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परिचय (Introduction)
मेरा परिचय यह है कि मेरा नाम राकेश शर्मा है।
उम्र मेरी इसको लिखते समय तक 40 वर्ष है। पढ़ाई-लिखाई की
बात करे तो मैंने अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा
की शुरुआत में ही छोड़ दी थी। निजी कारणों से। मैं दसवीं कक्षा पूरी नहीं कर
पाया। छोटा कद , साँवला रंग , नॉर्मल दुबला पतला शरीर है पर
शारीरिक फिट हूँ। किसी तरह का कोई बीमारी
नहीं है अभी तक। खेलों में मेरी हमेशा दिलचस्पी रही है पर कभी मौका नहीं मिल पाया| निजी कारणों से इसलिए मैं एक स्पोर्ट्स
मैन
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(sports man) नहीं बन पाया। कॉलेज
तक जाने की मेरी इच्छा थी पर मुझे पढ़ाई अपनी 10th के बीच में छोड़नी पड़
गई|
निजी कारणों से और यह
जो मैं आपको बार-बार निजी कारण–निजी कारण कह रहा हूं इस बारे मे मैं फिर कभी बताऊंगा
कि वह निजी कारण क्या थे| जल्दी ही क्योंकि अभी मेरा इस ब्लाॅग को लिखने का जो मकसद
है वह मेरी यात्रा के बारे में है। 15 वर्ष की आयु में ही मैंने अपना घर छोड़
दिया था और फिर खुद कुछ करके छोटे-मोटे काम करके फिर कुछ नौकरी, व्यापार करके मैंने अपना एक छोटा
सा एक घर बनाया, शादी करी। अभी मेरे घर में मेरी पत्नी है दो बेटियां
हैं और मेरी माताजी जालंधर, पंजाब में रहती है।
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मेरे पिताजी की की मृत्यु के समय
मै 16 साल का था और इससे ज्यादा कुछ अपने बारे में मेरे पास बताने के लिए है नहीं। बाकी सारे अनुभव है जो
वक्त के साथ या जब उनका समय आएगा तो उनके बारे में बात करूंगा। चाहे वह इस ब्लाॅग में हो या कहीं
किसी और जगह पर पढ़ने और कुछ जानने की
जिज्ञासा की वजह से मैं बार-बार कुछ ना कुछ पढ़ता रहा। कई संस्थानों में भी गया कई
किताबें पढ़ी और आज भी पढ़ता हूं और मैंने 4 साल से अधिक ज्योतिष विधया (Astrology) की पढ़ाई करी। दसवीं कक्षा तक मैंने
11 स्कूल तीन अलग-अलग राज्यों में बदले है और किसी भी राज्य में एक साथ 3 वर्ष से
ज्यादा नहीं रहा।
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ह्रदय परिवर्तन- मन कैसे और कहाँ बदला
साइकिल यात्री बनने का मेरे मन में
ख्याल कब आया और क्यों आया? यह बताना चाहता हूं। तो इसके लिए मैं आपको थोड़ा सा
पीछे लेकर जाना चाहता हूं। 2018 सितंबर से मैंने यात्राएं करना शुरू किया।
ट्रैवलिंग (travelling) शुरू कर दी। यात्राएं शुरू
करने का मेरा मकसद था कि दुनिया में लगभग 200 देश है और मरने से पहले कम से कम 100
देश तो देखने बनते है। एक ही जगह पर पैदा हो जाना और उसी जगह पर ही मर जाना। वही
गिनती के 100–200
या 500 लोग आपको जानते हैं। आप इसी को कहते हो कि हमने दुनिया देखी है।
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(पहले सफर की तैयारी ) Sri anka
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दुनिया में
8 अरब से ज्यादा आबादी है। हमें कितने लोग जानते हैं या हम कितने लोगो को जानते है
और हम कहते हैं कि हमने दुनिया देखी है। दुनिया में 200 से ज्यादा देश है हमने
कितने देश देखे हैं तो इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं ट्रैवलिंग करूंगा। अगर मैं 100
देश देख पाया तो मेरा परिवार भी कम से कम 50 देश तो देख लेगा। और देश देखना ही
मकसद नहीं था,
मकसद था दुनिया को जानना समझना, अपने आप को समझना और सीखना, क्योंकि मुझे किसी बौध भिक्षु ने कहा था और कई किताबों में मैंने पढ़ा था कि
हमेशा सीखते रहना चाहिए आखरी सांस तक। आपने सीखना छोड़ा और आपकी ग्रोथ (growth) वही रुक जाएगी।
अभी तक मेरा साइकिल
से कोई लेना-देना नहीं था। मैंने बहुत कम साइकल बचपन में चलाई थी, जितनी साधारण लोगों ने
चलाई होती है उससे भी कम। मेरे पास बचपन में बहुत कम समय ही साइकल रही। सितंबर
2018 में मैं दिल्ली से चेन्नई गया। चेन्नई से रामेश्वरम गया। रामेश्वरम, धनुषकोडी देखने के बाद
वहां से वापस चेन्नई आया। चेन्नई से मेरी फ्लाइट थी मैं श्रीलंका गया। श्रीलंका के
मैं कुछ शहरों में घूमा। कैंडी शहर (kendyogl), निगमबो शहर (Nigambo) कोलंबो (Colombo)। एक जगह है जिसका नाम सिगिरिया (Sigiriya) है | कहा जाता है वहां पर
कभी रावण की लंका थी। वहां पर गया। उसका वीडियो बनाकर मैंने अपने यूट्यूब चैनल (Rakesh Sharma) पर डाला आज उस पर 3 मिलीयन व्यूज (3Million Views) है।
कुछ दिन घर रहने के बाद। मैं काठमांडू नेपाल गया पहली बार। वहां लगभग एक महीना
रहने के बाद में वापस आया। फिर कुछ समय घर रहने के बाद मैं गोवा (Goa) गया वहां भी कुछ समय
रहने के बाद में वापस अपने घर आया। फिर कुछ समय घर रहने के बाद दोबारा में काठमांडू
गया इसी तरह मेरी यात्राएं चलती रही और जब मैं तीसरी बार काठमांडू गया। जुलाई 2019
में तो मैं लगभग 40 दिन वहां पर रहा। काठमांडू के बारे में मैं आपको बता दूं मैं
हर बार वहां पर एक ही जगह पर रुकता हूँ।

एक हॉस्टल है होमस्टे (Homestay)। एक फैमिली ने अपने घर
में ही हॉस्टल (Hostel) बनाया हुआ है।
पारिवारिक माहौल मिलता है। बहुत ही अच्छे लोग हैं तो हर बार मैं एक ही जगह रुकता
हूं। और इस तरह की जगहों पर जैसे हॉस्टल में, बैकपैकर्स में या डॉरमेट्री (Dormitory) में रुकने का मेरा
मकसद पैसे बचाना तो होता ही है क्योंकि मेरे पास इन यात्राओं के लिए बहुत सीमित
पैसे होते है क्योंकि यात्राओं की वजह से मैंने अपने कमाई के जरिए को छोड़ दिया और
दूसरी सबसे बड़ी वजह होती है हॉस्टल में रुकने की यहां पर आपको हर रोज नए-नए लोग
मिलते हैं अलग-अलग देशों के लोग मिलते हैं आपको बहुत कुछ जानने को सीखने को मिलता
है।
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वहां के लोग कैसा सोचते हैं। जो हमसे पीछे के देश हैं वह कैसा सोचते हैं और हम
कहां खड़े हैं आपको यह मालूम पड़ता है। हमारे में क्या अच्छी बातें है, हमारे में क्या बुरी
बात है? यह सब जानने को मिलता है। बहुत कुछ सीखने को मिलता है बिना उन देश जाए। जब
मैं जुलाई 2019 को काठमांडू में था। तो मैं लगभग 40 दिन वहां रहा। मेरे रूम में
मेरे बेड के अलावा 4 बेड और थे मतलब 5 लोगों के रुकने की जगह थी।
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मेरे से 1 महीने
पहले से वहां पर एक चाइनीस व्यक्ति रह रहा था। जिसका नाम “वांग” था और वह मेरा एक
अच्छा दोस्त बन गया मेरी और उसकी उम्र बराबर थी। वांग 40 वर्ष का था और 3 महीने
बाद मैं भी 40 का होने वाला था। वह चाइनीज आर्मी से रिटायर हुआ था। और इंग्लिश
सीखने के लिए नेपाल आया हुआ था। उसने लगभग 3 महीने रहना था। 1 महीने वह मेरे आने
से पहले से रह रहा था 40 दिन हम दोनों साथ रहे। नेपाल में इंग्लिश सीखना चीन की
तुलना में सस्ता और आसान है। इसलिए ज्यादातर चीनी लोग नेपाल में आकर इंगलिश सीखते
हैं। वांग भी सिलसिले में वहां पर रह रहा था। वांग से मिरी अच्छी दोस्ती हुई। हम
लोग दोनों ही टूटी फूटी इंग्लिश में बात करते थे।
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होते थे तो वह मुझे कहता आप मेरे समान में से नूडल्स, वेजिटेबल्स लेकर आप नीचे किचन में
जाकर बना लो वहां पर किचन में आप कुछ भी बाजार से लाकर अपना खाना बना सकते हो (सेल्फ
कुकिंग)। जब मैं काठमांडू में वहां पर रह रहा था। तो वहां पर एक लड़का आया जो
हमारे साथ दो-तीन दिन रहा वह स्पेन से था। उसका नाम अरनओ था। मैंने उससे पूछा कि
आप नेपाल पहली बार आए हो तो उसने बताया कि मैं दूसरी बार आया हूं। पिछले साल में
अपने दो दोस्तों के साथ आया था और इस बार में अकेले आया हूँ। तो मैंने पूछा
किसलिए तो उसने बताया कि पिछली बार जब हम आए थे हम तीन दोस्तों ने मिलकर एक अनाथ
बच्चे की 1 साल की एजुकेशन का खर्चा हमने गोद लिया था। जिसमें कि लगभग एक लाख
नेपाली रुपए दान दिए थे। जिससे एक बच्चे की 1 साल की एजुकेशन का खर्चा निकलना था।
जो कि उसने मुझे बताया लगभग 1000 यूरो के आसपास की रकम थी। इस बार मैं अकेले अपने पैसों से एक और बच्चे की 1 साल की
एजुकेशन का खर्चा गोद लेने के लिए आया हूं। मैंने पूछा कि आप क्या करते हो? उसने
कहा मैं स्पेन मे यूनिवर्सिटी में पढ़ता हूं। तो मैंने कहा कि पैसे कहां से आए ?
आप तो पढ़ रहे हो तो उसने कहा कि मैं संडे को फुटबॉल मैच मे गोलकीपर के का काम
करता हूं तो उससे मुझे कुछ पैसे मिलते हैं।
मम्मी पापा यूरोप में डॉक्टर है जो पैसे कम पड़े वह मैंने उनसे लिए। वो पैसे लेकर
वह नेपाल है आया एक अनाथ बच्चे की 1 साल की शिक्षा का खर्चा गोद लेने और आपको
जानकर हैरानी होगी कि उसकी उम्र मात्र 19 वर्ष थी। एक और 25 वर्षीय लड़का हमारे
साथ कुछ दिन रहा था उसका नाम “कैन” था ? वह जर्मनी से था। उसने मुझे बताया कि वह
हवाई यात्रा नहीं करता क्योंकि हवाई यात्रा से जो कार्बन उत्सर्जन होता है। प्रदूषण होता है उससे पर्यावरण को नुकसान होता है तो मैंने कहा आप जर्मनी से नेपाल
भी तो फ्लाईट से ही आए हो क्यो कि बिना हवाई यात्रा के आना मुमकिन नहीं है। तो उसने
बताया कि एक वेबसाइट है। “माई क्लाइमेट” के नाम से और जब मजबूरी होती है कि मुझे
हवाई यात्रा करनी ही पड़े तो मैं उस वेबसाइट पर जाकर अपनी यात्रा की पूरी जानकारी
देता हूं।
वह वेबसाइट इतना पता करती है कि उस यात्रा के दौरान हवाई जहाज ने कितना
कार्बन उत्सर्जन किया कितना प्रदूषण हुआ उसको वह एक रकम में तब्दील करके उसे बताती
है और वह उतनी रकम उस वेबसाइट पर दान करता है वह वेबसाइट कुछ गरीब और ज्यादा
प्रदूषण फैलाने वाले देशों में या तो पेड़ लगाती है या सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरण
गरीब लोगों को दान देती है ताकि जितना प्रदूषण हवाई यात्रा के दौरान हुआ उसकी
भरपाई हो सके। कैन ने मुझे बताया। अपनी यात्राओं के दौरान।
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वह नदी, तालाबों में नहाते समय
साबुन का इस्तेमाल नहीं करता है और अगर करना पड़े तो एक विशेष तरह का साबुन बाजार
में मिलता है तो थोड़ा सा महंगा होता है। पर उससे किसी भी जीव जंतु को या किसी भी नदी के पानी में रहने वाले जीवो को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। यह जानकर मुझे
बहुत हैरानी हुई। इसी तरह जब मैं दूसरी बार काठमांडू में था तो वहां पर मुझे एक
एप्रिल नाम की महिला मिली जो इंग्लैंड से थी और वह नेपाल में लावारिस कुत्ते, जिन्हें हम स्ट्रे डॉग बोलते हैं, उनके लिए वहां पर काम कर रही थी| उनकी उम्र लगभग
50 वर्ष थी। इसी तरह एक बार मुझे एक लड़की मिली, उसका मुझे नाम याद नहीं है। वह भी
लगभग 25 वर्ष के आसपास की होगी। वह नेपाल में अनाथ बच्चों के लिए काम कर रही थी।
हॉस्पिटल्स बन रहे थे तो वह वहां पर वॉलिंटियर (volunteer ) बनकर आई हुई थी। अपनी नौकरी से 6
महीने की छुट्टी लेकर। इन लोगों से बात करके मुझे मालूम पड़ा कि दुनिया के बहुत
सारे छोटे देशो, गरीब देशो या प्रदूषित देशों में ऐसे लोग जाकर काम
करते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग उन देशों से है जहां पर इस तरह की समस्याएं या तो
नहीं है या बहुत कम है। तो मुझे इन लोगों से बात करके काफी आत्मग्लानि हुई। हमारे
देश में प्रदूषण है, हमारे देश में बहुत सारी समस्याएं हैं और हम केवल
उंगली उठाने का और दोषारोपण का काम करते हैं।
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हम या तो सरकार को दोष देते हैं या
पड़ोसी को दोष देते हैं| हमेशा दूसरों को दोष देते हैं| मुझे लगा मैं क्या कर रहा हूं? तो
उस समय मेरे पास केवल दो रास्ते थे या तो घर में बैठकर लोगों की बुराई करूँ कि दुनिया
कभी बदल नहीं सकती, कोई कुछ नहीं कर सकता, सरकार ऐसी है, पड़ोसी ऐसा है, लोग ऐसा सोचते हैं
वगैरह-वगैरह या मैं खुद निकलू और लोगों से बात करूं, उन्हें समझाऊ और खुद अपना
योगदान दे सकूं| तो मैंने दूसरा रास्ता चुना कि अब मैं यहां से लोगों से मिलूंगा
इसके लिए मैंने नेपाल, काठमांडू से साइकल ली और दिल्ली तक में साइकिल से आया| 1580
किलोमीटर साइकिल चलाई| उस यात्रा मे तीन हजार से ज्यादा लोगों से मैंने बात करी जिनमें से 10 से 11 लोगों ने मेरी
बातों से प्रभावित होकर साइकिल खरीदी।

में पड़ी हुई साइकिल को निकालेंगे और उसे दिनचर्या के कामों में इस्तेमाल करना
शुरू करेंगे। मैंने सोचा था कि कोई बदलाव नहीं आएगा पर मैंने देखा बदलाव आता है।
मैंन 10 अगस्त 2019 को काठमांडू से अपनी पहली साइकिल यात्रा शुरू कर दी थी और 1
सितंबर 2019 को मैंने अपनी यात्रा इंडिया गेट,दिल्ली पर पूरी करी थी।
इस यात्रा
के खत्म होने के बाद भी कई लोगों के फोन आते रहे कि हमने आपकी यात्रा से प्रभावित
होकर अपनी साइकिल को चलाना शुरु किया या हमने अपने बच्चों को साइकिल के लिए जोर
दिया। काठमांडू से दिल्ली की यात्रा के परिणाम देखकर ही मैंने इससे बड़ी यात्रा
कश्मीर से कन्याकुमारी साइकिल से करने का फैसला किया।
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