यात्रा शुरू करने से कुछ दिन पहले
से) अकेले करने की फैसला लिया तो मैने अपने कुछ दोस्तों से बात करी। उनसे जिक्र
किया तो उनका जो जवाब था वह मुझे निराश करने वाला था, किसी ने भी प्रोत्साहित नहीं
किया। मेरी पत्नी को मुझ पर भरोसा था इसलिए वह मेरे फैसले के साथ थी। मेरे बच्चे
छोटे हैं पर वह भी साथ थे।
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मैं यह यात्रा करना चाहता हूँ|उसके लिए मुझे कुछ आर्थिक मदद की जरूरत है जो सिर्फ
आप नहीं करोगे, आप के आगे जो दोस्त है, हम उन सब लोगों से थोड़ी–थोड़ी मदद लेंगे| जिन्हें लगता है कि यह कदम सही है और कोई पर्यावरण के लिए कुछ करना चाह रहा है और
वह उसको योगदान देना चाहते हैं तो। चाहे 100 रूपये की मदद भी वह कर सकते है| पर
मेरे इस सुझाव को सुनकर मेरे दोस्तों ने मेरा मजाक उड़ाया या मुझे ना उम्मीद किया।
तो आप सबके आगे 10–10 दोस्त होंगे|अगर हम एक व्हाट्सएप ग्रुप (what’sup group) बनाएं और
लोग मेरी इस यात्रा से जुड़े और जिनकी अपनी मर्जी हो वह मुझे 100 रूपये मिनिमम (minimum) की
सहायता करे, तो मैं यह यात्रा शुरू कर लूंगा| परंतु मेरे दोस्तों ने मेरे सुझाव को
खारिज कर दिया और कहा कि आप हमसे थोड़े बहुत पैसे ले लो, पर हम आगे नहीं बोलेंगे किसी को, क्योंकि हमारी नजर में और हमारे आगे दोस्तों की नजर में तो यह पागलपन है| परिवार पालने की उम्र में आप ये सब काम कर रहे हो| इस तरीके से उन्होंने मुझे निराश
करके वापस भेज दिया। बाकी लोगों के विचार भी मिलते-जुलते ही थे।
प्रतिकूल परिस्थितियां होती है तो मैं निराश होने की बजाय उन परिस्थितियों को अपने
अनुकूल बनाने मैं लग जाता हूँ। इससे मेरा फैसला और मजबूत हो गया और मैंने इसे
जल्दी शुरू करने की कोशिश करी।
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यात्रा शुरू करने से पहले की तैयारी
मेरे पास पूरे पैसे नहीं थे| दूसरा अपने परिवार को सुरक्षित माहौल में डालना ताकि
किसी वजह से अगर मैं वापस नहीं लौटा या मुझे इस यात्रा के दौरान कुछ हो गया तो वह
आगे का अपना जीवन सही तरीके से जी सके।
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ताकि अगर मैं नहीं लौटा तो वह वहां रह सकते हैं और नीचे वाले घर के किराए से बेसिक
गुजर बसर कर सकते है| बाकी हर आदमी परिस्थिति के हिसाब से मजबूत बन जाता है। एक
मेरा इंश्योरेंस था कि अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे परिवार को कुछ रकम मिल जाएगी, जिससे आगे का भविष्य कुछ हद तक सुरक्षित हो जाएगा । अब दूसरा काम था अपनी
साइकिल को तैयार करना और कुछ जरूरी सामान को लेना जो मेरी इस यात्रा में मेरे काम आएगा| तो मेरे पास जो भी थोड़े–बहुत पैसे थे उनसे मैंने कुछ सामान ऐमेज़ॉन (Amazon) से
मंगवाया। जैसे साइकिल की लाइट, साइकिल का हॉरन, रेनकोट कुछ इस तरह की
चीजे मंगवाई, जो कि कुछ हजार में आ गई| पर कुछ बहुत जरूरी चीजें मैं नहीं मंगवा पाया
पैसों की कमी की वजह से जैसे सोलर चार्जर, टेंट जिसे हम कैंप
कहते हैं, स्लीपिंग बैग यह तीन
चीजें बहुत जरूरी थी| पर पैसे ना होने की वजह से मैंने इन चीजों के बगैर ही यात्रा
शुरू करने का फैसला किया।
को सीधे तौर पर यह बताया कि मेरे पास पैसे
कम है और मैं यह जरूरी सामान नहीं खरीद पा रहा हूँ| जिसकी वजह से मेरी जान भी खतरे
मे पड़ सकती है| क्योंकि उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड शुरू हो रही थी। दिन बहुत
छोटे हो रहे थे।
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पर मुझे पता नहीं जानबूझकर या अनजाने में उन्होंने इस
तरफ ध्यान नहीं दिया और मैंने अपनी यात्रा इन सामानो के बगैर ही शुरू करी।
साइकल की तैयारी
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Video Link |
इस
यात्रा के दौरान मै बीच-बीच में बार-बार काठमांडू से दिल्ली की यात्रा का जिक्र
जरूर करूंगा| क्योंकि उसके बगैर इस यात्रा के बारे में बताया नहीं जा सकता| तो जब
मैं दिल्ली आया था, काठमांडू से साईकिल पर। उस समय से साइकिल जिस हालत में खड़ी थी, उसी हालत में मैंने साइकिल को छत पर लाकर साफ किया| जो भी ऑयल डाल सकता था, वह किया
जो सामान लाया था उन्हें उस पर सेट किया और फिर वापस सेट करके देखने के बाद वापस निकाल
कर अलग किया। सामान को अलग पैक किया। जरूरी कपड़े निकाले। ठंड के डर की वजह से कुछ
गर्म कपड़े मैंने ज्यादा ही रख लिए।
घर से निकलने का दिन
मेरे दो बच्चे इंतजार करने लगे उस दिन का जिस दिन की यात्रा शुरू होनी थी। कुछ
घबराहट भी थी। कभी-कभी डर भी लगता था कि कहीं ज्यादा बड़ा फैसला तो नहीं ले लिया! कर पाऊंगा कि नहीं कर पाऊंगा! पर विश्वास था अपने ऊपर और फिर वह दिन आ गया। 3 नवंबर
2019, पूरी तैयारी हो चुकी थी, मेरी पत्नी ने मेरा बैग पैक कर दिया। एक लिस्ट बनाकर
छोटी-छोटी जरूरत की चीजों को उस में रख दिया। एक दिन पहले ही मैं दिल्ली के
कश्मीरी गेट जाकर बस का पता करके आ चुका था कि किस तरीके से मैं साइकिल के साथ
कितने खर्चे में मै जम्मू कश्मीर पहुंचूंगा।
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यानी 3 नवंबर 2019 को मैं अपने घर से जम्मू कश्मीर के लिए बस मे साइकिल रख कर
जाऊंगा और वहां से कश्मीर से कन्याकुमारी के लिए साइकिल से अकेले निकलूंगा। मै एक
ऐसी यात्रा पर जा रहा था जिसका मुझे मालूम नहीं था कि मैं इतनी बड़ी यात्रा कर
पाऊंगा कि नहीं कर पाऊंगा। अपने घर पर वापस लौटूंगा या नहीं लौटूंगा| और फिर तय हुआ
कि शाम को 7:00 बजे मैं अपने घर से निकलूंगा| शाम हुई मैने पहले कुछ खाना खाया| मेरी
पत्नी ने पांच या छ: रोटी और मैथी आलू की सब्जी को टिफिन में पैक करके दिए
और मैंने अपनी बिल्डिंग के नीचे बेसमेंट में जाकर अपनी साइकिल पर अपना सामान बांधा।
मै अपने दोनो Pet Dogs से मिला जिनका नाम “टोनी” और “जेरी” है। मेरी पत्नी
और मेरी दोनों बेटियां मुझे नीचे छोड़ने आई और मैं चल दिया| अपने घर से एक ऐसे सफर
पर जो बहुत ही कम लोग करते हैं और पता नहीं उसको पूरा कर पाते है या नहीं कर पाते
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, वापस लौटते है या नहीं
लौटते हैं। और मैं चल दिया बिना
किसी आर्थिक तैयारी के, बिना किसी से शारीरिक तैयारी के।
हिम्मत लेकर। लगभग 35 से 40 मिनट में मैं अपने घर से कश्मीरी गेट (दिल्ली) बस
अड्डे पहुंचा।
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अपने घर से कश्मीरी गेट (दिल्ली)
जाते समय मैंने हेलमेट पहना था, रिफ्लेक्टिंग जैकेट पहनी थी, पर साइकल पर वह 2 बोर्ड
मैंने नहीं लगाए थे जो मैंने प्रिंट करवाए थे} एक साइकल के आगे के लिए और एक पीछे
के लिए। जिस पर मेरी यात्रा की जानकारी लिखी हुई थी। लोग मुझे साइकिलिस्ट की तरीके
से देख रहे थे पर उन्हें मालूम नहीं था कि मै कश्मीर से कन्याकुमारी के लिए सफर पर
जा रहा हूँ साइकिल से। पर मुझे मालूम था तो मेरा उनको देखने का नजरिया कुछ अलग था।
कुछ जोश के साथ था। मैं चाहता था कि मैं उन्हें बताऊं कि मैं क्या करने जा रहा हूं पर दिल्ली के ट्रैफिक जाम और भीड़ की वजह से और एक झिझक की वजह से भी मैं उन्हें
नहीं बता पाया। सब लोग जल्दी में थे। किसी के पास समय नहीं था, किसी से बात करने के
लिए। और मैं चलता रहा कश्मीरी गेट बस
अड्डे दिल्ली की तरफ।
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