K2K यात्रा से 2 दिन पहले
अड्डे की तरफ जा रहा था। उस समय मेरे दिमाग में यही सब चल रहा था थोड़ा डर था, थोड़ी हिम्मत थी, थोड़ा आत्मविश्वास था
और मैं यह यकीन करने की कोशिश कर रहा था कि मैं सच में निकल पड़ा हूं} अपने घर से
और कल मैं कश्मीर पहुंच जाऊंगा और वहां से मैं साइकिल लेकर कन्याकुमारी (हिंदुस्तान
का आखिरी छोर) की तरफ चल पड़ूंगा। पता नहीं कर पाऊंगा या नहीं कर पाऊंगा मुझसे हो
पाएगा या नहीं हो पाएगा और साथ में ही फिर जवाब आता था कि नहीं, “मैं कर लूंगा” लग रहा था कि कहीं
रास्ते में कुछ हो गया तो शायद कभी वापस न लौट पाऊं, तो बहुत अजीब मनोदशा थी। उस
समय मेरे और मेरे परिवार के अलावा किसी को नहीं पता था कि मैं यह यात्रा शुरू कर
चुका हूँ। मैं अपने घर से निकल गया हूं| इसलिए कोई हौसला अफजाई के लिए मेरे पास कोई
किसी की कोई बात नहीं थी।
कटरा (जम्मू–कश्मीर)
जा रही थी, मैंने उसको इशारा किया। ड्राइवर से बात करी। उसने कहा 1500 रुपए लगेंगे, मैंने कहा मैं 1500 रूपये नही दे सकता।
उसने कहा आपके लिए लास्ट फाइनल 1000 रूपये लगेंगे। आपके पास साइकल भी है और एक
हजार रुपये में तय हुआ। साइकल और एक बड़े बैग को मैने बस की एक बड़ी सी डिक्की में
रख दिया और मैं ड्राइवर के केबिन में ही
जाकर बैठ गया। Video Link
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मेरे पास एक छोटा हैंड बैग था जिसमें मेरा खाना, मोबाइल चार्जर, पावर पावर बैंक, टिशू पेपर, पेपर सोप इस तरह की
कुछ जरूरी चीजें थी| जो मेरे पास था पर पानी की बोतल मेरी साईकिल के बैग में थी जो
साइकिल के साथ डिक्की के अंदर लॉक हो चुकी थी। मेरे पास पानी नहीं था और बस चल
पड़ी और सफर शुरू हो गया और उसी समय (3 नवंबर 2019) को बस में बैठे हुए मैंने जो एक
पोस्ट पहले से बनाई हुई थी।
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k2k जर्नी (journey) की पोस्ट को
मैंने 8:13 pm पर
मैने फेसबुक पर अपलोड कर दिया की मै यात्रा शुरू कर चुका हूँ । वह मैंने
व्हाट्सएप पर अपने कांटेक्ट लिस्ट के ज्यादातर लोगों को भेज दिया जिससे लोगों को
औपचारिक तौर पर (official
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ly) यह मालूम पड़
गया कि मैं यह यात्रा शुरू कर चुका हूं। बहुत सारे लोगों ने 👍 👌 🙏 👏 भेजा। कुछ करीबी दोस्तों ने
कांग्रेचुलेशन (congratulation) या हिम्मत के लिए बधाई दी। इनमें वह लोग भी शामिल थे जो काठमांडू से
दिल्ली अकेले साइकिल से आते समय मेरे
मित्र बने थे या जो मुझे उस पंद्रह सौ किलोमीटर की यात्रा के दौरान रास्ते में
मिले थे और वह सोशल मीडिया के थ्रू मेरे साथ जुड़े हुए थे। कुछ ऐसे थे जिन्होंने
कोई रिप्लाई नहीं किया।
के बॉर्डर की तरफ बढ़ रही थी| मैं थका हुआ था क्योंकि लगभग 25–30 किलोमीटर साइकिल चला
कर आया था| घर से बस अड्डे तक। रविवार(Sunday) का दिन था, ट्रैफिक कम था, पर फिर भी काफी थका
हुआ था और मुझे प्यास लग रही थी| जैसा कि मैंने आपको बताया मेरी पानी की बोतल
साइकिल के साथ डिक्की में लॉक हो गई थी तो मैंने रास्ते में से जिस लाल बत्ती पर
बस रुकी, बुराड़ी के आसपास वहां से मैंने एक पानी की बोतल खरीदी आप इस पानी की बोतल
को याद रखना इसका जिक्र आगे कई बार आएगा।
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मेरे बारे में मालूम पड़ा मेरी यात्रा के बारे में तो बड़े हैरान हुए। ड्राइवर ने
कहा कि आपको क्या मिलेगा। मैंने का कुछ नहीं कुछ भी नहीं मिलेगा| तो वह बोला फिर
क्यों कर रहे हो, अगर कुछ मिलेगा तो बताओ फिर मैं भी चलता हूं आपके साथ| बताओ हमें
क्या दोगे? मैं भी चलता हूं साइकिल से, और
मैंने हंसी में बात टाल दी। लगभग 11:30 बजे के बाद मुझे जब नींद आने लगी तो मैंने
बस के जो कंडक्टर से कहा कि मुझे सोना है, तो उसने कहा अंदर चले जाओ, बस के और नीचे
फर्श पर लेट जाओ कुछ निचे बिछा लेना। पहले तो मैं कुछ देर झिझका और बस के अंदर
जाकर फर्श पर बैठ गया गत्ते के ऊपर क्योंकि वह स्लीपर बस थी। लोग सो रहे थे अपने–अपने कैबिन में और नीचे
उनके जूते-चप्पल पड़े थे। थोड़ी देर बाद जब नींद ज्यादा आई तो मैंने शर्म झिझक को
छोड़कर नीचे गत्ता बिछाया और फर्श पर सो गया।
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जगह के आसपास किसी छोटे से ढाबे पर बस रुकी । वहां मैंने अपना जो हैंड बैग था
उसमें से खाना निकाला। प्लास्टिक की डब्बी जब मैंने खोली तो उसमें मेथी आलू थे} पत्नि ने सूखी सब्जी इसलिए बनाई थी कि रास्ते
में दिक्कत ना हो। उसमे कुछ सात से आठ परांठे थे, तो मैंने 3 परांठे खाए और 3 या 4
लगभग रख लिए बचाकर सुबह के लिए। ठंड बहुत ज्यादा थी और हाईवे पर खुला होने की वजह
से ठंड और भी ज्यादा लग रही थी| और वैसे मैंने गर्म कपड़े पहने हुए थे जैकेट भी थी।
मै और खाना खा सकता था पर इसलिए नहीं खा रहा था क्यो कि ज्यादा खाना सफर में
नुकसान देता है या दिक्कत होती है। कुछ देर टहलने के बाद, खुले मे टॉयलेट जाने के बाद बस चल
पड़ी ।
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लगभग 5:00 बजे की आस पास बस पठानकोट पार कर रही थी।
कुछ देर बाद जम्मू आया मैं उठ चुका था। पठानकोट से काफी पैसेंजर उतरने की वजह से
बस काफी खाली हो गई थी और मैं उनके स्लीपर केबिन में जाकर लेट गया| लगभग एक घंटा
कच्ची नींद में सोया भी।
जम्मू से कटरा की चढ़ाई शुरू हो गई| फिर मुझे नींद भी नहीं
आई और मैं कुदरती नज़ारे खिडकी से देखने लगा। मोबाईल कैमरे से फोटो लेने लगा, वीडियो बनाता रहा। सभी
वीडियो मैंने अपने यूट्यूब चैनल एस्ट्रो राकेश पर अपलोड किए हुए और कुछ वीडियो
फेसबुक पर भी है
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लगभग सुबह 7:00 बजे 4 नवंबर 2019 को मैं कटरा पहुंच
गया था| कंडक्टर और ड्राइवर से जान पहचान हो गई थी| उन्होंने मेरी साईकिल डिक्की से
निकालने में मेरी मदद करी। उसके बाद उन्होंने मेरे साथ फोटो ली, सेल्फी ली मुझे चाय
पिलाई। मेरा फोन नंबर एक डायरी में लिखा और कहा कि हम आपको फोन जरूर करेंगे और पता
करते रहेंगे कि आप कहां तक पहुंचे और मैंने उनसे कहा कि मुझे लगभग जम्मू-कश्मीर
पार करने में चार-पांच दिन से ज्यादा का समय लग सकता है| क्योंकि जम्मू कश्मीर में
मोबाइल और इंटरनेट बंद है, इसलिए शुरू के चार-पांच दिन में आप मुझे फोन नहीं कर
पाओगे| पर उसके बाद अगले जो 2 महीने लगेंगे मुझे कन्याकुमारी पहुंचने में तब आप
मुझे फोन करना मैं आपको जरूर बताऊंगा अपने बारे में।
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