कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से –
पहला दिन : 5 November 2019
Blog no. 8
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
मुझे यह नहीं पता था कि मुझे कहाँ पर सोने की जगह दी
जाएगी। हॉल के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था। जो हॉल के आगे की लॉबी थी और जो खुली
छत थी, वहाँ पर ही मैं घूम रहा था। मैं इंतजार कर रहा था कि कोई मुझे बताए कि
मुझे कहाँ पर सोना है? मैं काफी झिझक भी रहा था। मुझ में उस समय कुछ
आत्मविश्वास की कमी भी थी। क्योंकि पहली बार मैं किसी मंदिर मे रात रुकने जा रहा
था।
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
तभी मंदिर प्रशासन के एक व्यक्ति ने आकर मुझे कहा कि यहाँ पर जो दरी पड़ी हुई
है उठा लो और उसको बिछा लो और आप यहीं पर सो जाओ। मैं इतना हैरान हुआ कि इतनी ठंड
में, खुले में मुझे सोना पड़ेगा। उन्होंने कहा हॉल में कल कोई बारात रुकी थी, कोई शादी थी मंदिर में और बारातियों में से कोई उस हॉल
को लॉक करके चाबी गलती से अपने साथ ले गया है।
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
काले रंग की लाइने बनी होती है। उस दरी को मैंने तीन से चार बार फोल्डड करके उसको बिछाया और बिस्तर की तरह यूज करने की कोशिश
करी। मेरे पास ओड़ने के लिए कुछ भी नहीं था। तो मैंने अपने बैग का तकिया बनाया। और
अपने बैग के अंदर से विंचीटर निकाली, गरम टोपी निकाली, मफलर मैंने पहले से ही पहना हुआ था, दस्ताने और 2
जोड़ी जुराबे पहनकर में लेट गया।
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
और उन्होंने मुझे ओड़ने के लिए एक पतला कंबल दिया। मैं सोने की तैयारी कर ही रहा
था तभी वहांँ पर एक सरदार जी घूम रहे थे। उन्होंने मुझसे इशारों से पूछा कि खाना
कहाँ मिलेगा? मैंने उनको बताया कि वहाँ सामने रसोईघर है। वहाँ पर जाकर आप कहिए वह
आपको खाना दे देंगे। उसके बाद सरदार जी खाना वगैरह खाने के बाद वह मुझे दोबारा
मिले तो मुझे मालूम पड़ा कि वह बोल सुन नहीं सकते थे।
हो गई और एक तरफ सरदार जी और एक तरफ मैं लेट गया।
Cycle Blog Rakesh Sharma
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
Leave a Reply