कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से –
दूसरा दिन : 6 November 2019
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Blog no. 11
में साइकिल (Cycle) नहीं रोकी और जानबूझ कर इस तरीके से दिखाने की कोशिश करी थी जैसे मैंने
उन्हें नहीं देखा। मुझे सम्भावना लग रही थी कि जो आसपास रात को जो फायरिंग हुई है।
यह वही लोग है और उनके पास एक बंदूक भी बीच में रखी हुई थी। मैं बुरी तरह। से डरा हुआ साइकल को चला रहा था और
पीछे मुड़ के देखा कि चीची माता मंदिर कितनी दूर है। क्योंकि अगर कोई
मुसीबत आए तो मैं वापस चीची माता मंदिर जा सकता हूँ या नहीं क्योंकि वहाँ पर
भारतीय सेना के जवान भी थे।
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हाईवे बिल्कुल सुनसान था। सुबह का वक्त था। ठंड के मौसम
में धुंध और कोहरे की वजह से विजिबिलिटी भी कम थी। सब कुछ धुंधला और कम दिखाई दे
रहा था। मैं बहुत ही घबरा गया। फिर गाड़ी स्टार्ट करने की आवाज आई और उन लोगों
ने तेजी से उस गाड़ी को मेरी साइकिल (Cycle) के आगे आकर रोक दिया। और मैंने फिर साइकिल (Cycle) रोक
दी। मैंने सोचा आज तो मेरा काम हो गया।
मैंने अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कुराहट
रखी। आप महसूस करने की कोशिश कीजिए कि उस समय मेरे दिमाग में क्या चल रहा होगा?
मेरा दिमाग दुगनी तेजी से रक्षात्मक प्रणाली अपनाने की शुरूआत करने लगा। तुरंत मेरे
दिमाग में यह बात आई कि अगर वह पूछेंगे कि हमने तुझे रुकने का इशारा दिया तू रुका
क्यों नहीं? तो मैं उनसे यह कहूंगा कि मैंने देखा नहीं और मैं लेट हो रहा हूँ। मुझे जल्दी जाना है। इस तरह की बातें मेरे दिमाग में फटाफट आने लगी।
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तभी गाड़ी के
दरवाजे खुले उसमें से वह चारों लोग बाहर आए। वह चारों लोगों में से एक ने शॉल लपेट
रखी थी। एक लड़के ने ट्रैक सूट पहना हुआ था और बाकी ने टीशर्ट पजामा या जींस पहनी
हुई थी और यंग लड़के थे। सभी ने स्पोर्ट्स शूज पहने हुए थे। वह मेरे पास आए और
उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया और मुझसे कहा कि आप कहाँ से आ रहे हो? मैंने उन्हें
बताया कि मैं कटरा से आ रहा हूँ।
उन्होंने
कहा आप कन्याकुमारी तक जाओगे? मैंने कहा हां। उन्होंने कहा साइकल (Cycle) से? मैंने कहा
हाँ। तो उन्होंने मुझे शाबाशी दी। मेरे साथ फोटो ली। मुझे शुभकामनाएँ दीं और तब मेरा
सारा डर, घबराहट
खत्म हो गया। मैंने उनकी गाड़ी में नजर डाली तो जो मुझे बंदूक जैसी चीज लग रही थी
वह कुछ और थी। वह मेरा वहम था। तो इस तरीके से तो सुबह की शुरुआत हुई, बड़े ही अजीब
तरीके से।
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जब उनकी गाड़ी मेरे साइकिल (Cycle) के आगे आकर रुकी तो उस समय तो मुझे अपना
इंश्योरेंस, अपना
परिवार सब याद आने लगा। मुझे लगा कि यह लोग मेरे को किडनैप कर लेंगे, पर अब हंसी आ
रही है। मैं क्या क्या सोचने लगा था कुछ ही सेकंड मे। फिर मैं बहुत खुश था और
हंसते हुए साइकिल (Cycle) चला रहा था। मुझे अपने ऊपर ही हंसी आ रही थी कि मैं क्या-क्या
सोच बैठा था और क्या निकला? और इसी तरीके से मैं आगे चलता रहा दिन की शुरुआत हो
चुकी थी।
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Cycle blog Rakesh Sharma
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