कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से –
पहला दिन : 5 November 2019
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आज 5 नवंबर 2019 है, लगभग सुबह के 9:00 बज रहे हैं। सुबह-सुबह जल्दी उठ कर मैं तैयार हो गया। साइकिल के ऊपर मैंने अपना सामान बांधना शुरू किया और ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे कि आप याद करो जब आपके स्कूल का फाइनल पेपर होता था और उस दिन सुबह जो आपकी मनोदशा होती थी, बिलकुल वैसी ही मनोदशा मै महसूस कर रहा हूँ अपनी। जैसे कोई परीक्षा देने जा रहा हूं मैं।
साइकिल पर सामान बांधने में मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगा, जैसा कि काठमांडू से दिल्ली आते टाइम लगता था। उस समय मैं अपना सामान साइकिल पर रस्सी से बांधा करता था। पर इस बार मैंने रेडीमेड इलासटिक वाली क्लिप ली है, जिसके दोनों तरफ हुक होता है। जो आपको याद होगा बाइक या टू व्हीलर पर लोग इस्तेमाल करते हैं, तो उससे बहुत ही कम समय में और आसानी से मेरा सामान बंध गया।
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साइकिल पर अपने देश का तिरंगा लगाने के लिए मैंने दिल्ली से ही अपने दोस्त अरुण की मदद से एक तार वेल्डिंग करवा ली थी, साइकिल के पीछे। पर कल जब मैं कटरा पहुंचा था तो साइकल बस से उतारने के बाद सामान बांधने के समय बस के ड्राइवर ने मेरी मदद की और उससे वह तार टूट गई। तो मैंने अब तिरंगा जो मेरे पास पाइप है उस पर लगा कर पीछे सामान के साथ बांधा है। मेरी पूरी कोशिश थी और है और आगे भी रहेगी कि तिरंगा मेरे सर से ऊपर रहे। नहीं तो मैं तिरंगे को साइकिल पर आगे की तरफ लगाऊंगा, पर आगे लगाने पर तिरंगे की वजह से मुझे आगे देख पाने में दिक्कत होती है।
कई बार हवा बहुत तेज चलती है तो जिसकी वजह से मैंने फैसला लिया था कि मैं तिरंगे को साइकिल के पीछे की तरफ लगाऊंगा, पर उसे मैं अपने सिर से ऊंचा रखूंगा। क्योंकि वह तार टूट गई है, जिसे मैं अब आगे कहीं रास्ते में, जहाँ मुझे सही जगह मिलेगी वहाँ पर मैं इसका इंतजाम करूंगा। अब मैं साइकिल पर अपना सामान बांध कर पूरी तरह तैयार हूँ।
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तिरंगा मैंने पाइप से लगा दिया। गेस्ट हाउस का मालिक और उसका स्टाफ बड़ी अजीब नजरों से मुझे देख रहे हैं और हैरान भी है। और वह कुछ हद तक तो सहमत नहीं है कि मैं क्यों कर रहा हूँ और कर भी पाऊँगा कि नहीं कर पाऊंगा, जो मुझे उनसे बात करके अंदाजा लगा। पर वह उत्साहित थे और मुझे हिम्मत बंधा रहे थे, हौसला दे रहे थे और भी पड़ोसियों को बुलाकर बता रहे थे कि देखो यह यहाँ से अब
कन्याकुमारी जा रहा है,
साइकिल से। उनमें से कुछ पड़ोसी ऐसे थे जिन्हे यह नहीं पता था कि
कन्याकुमारी कहाँ है ? उन्होंने पूछा
कन्याकुमारी कहाँ है, तो वह उन्हें अपनी
कश्मीरी भाषा में यह बता रहा था कि हिंदुस्तान को सबसे आखरी शहर। यह जानकर वह हैरान हो रहे थे, पर उनकी हैरानी में बहुत ज्यादा हैरानी नहीं थी क्योंकि उन्हें असल में
कन्याकुमारी नहीं मालूम था कि कितनी दूर है यहाँ से।
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अब मैं उन लोगों से अलविदा लेकर निकला। उन लोगों ने भी मेरी हौसला अफजाई करी और मुबारकबाद दी। मुझे यात्रा शुरू करने के लिए और मैं पतली पतली गलियों से मेन रोड कटरा की तरफ निकल पड़ा।
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