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Mistakes are proof you are trying.


Kashmir to Kanyakumari by cycle blog 2

कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से – 


पहला दिन : 5 November  2019


Blog no. 2

गलियां पतली थी, क्योंकि गेस्ट हाऊस सड़क से अंदर था और मैं पैदल ही चला साइकिल लेकर उस पतली सी गली में से। कुछ दुकानें खुल चुकी थी जो बड़ी हैरानी से मुझे देख रहे थे, साइकिल पर लगे हुए बोर्ड को देख रहे थे। जब तक वह कुछ समझ पाते, मैं आगे निकल गया और मैंने कुछ देर साइकल से कटरा चौक पर दो चक्कर लगाए।

kashmir to Kanyakumari by cycle

उस बीच में बहुत सारे टैक्सी ड्राइवर, ऑटो ड्राइवर ने मुझे रोका, कुछ पुलिसवालो ने भी बात करी। मेरे साथ फोटो लेने का वहीं से सिलसिला शुरू हो गया।

कुछ ने मुझे पहचाना, उन्होंने कहा हमने आपको कल भी देखा था। जब मैं उधमपुर गया और उधमपुर से वापस आया था और वहाँ पर कुछ आधा घंटा बिताने के बाद उसी चौक से ढलान नीचे उतरती है, जो जम्मू की तरफ जाती है और मैं वहाँ से उस तरफ चल पड़ा। ढलान धीरे-धीरे और तीखी और तेज होती जा रही थी। बहुत मज़ा आ रहा था।

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उत्साह चरम सीमा पर था। जो लोग साइकिल चलाते हैं उन्हें पता है कि साइकिल चलाने वाले के लिए ढलान की क्या अहमियत होती है? पर वही ढलान जब बहुत तीखी ढलान हो जाती है, तब वही साइकल जो आपको मजा दे रही थी, वह आपके अंदर डर पैदा करती है। आउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है। साइकिल का संतुलन बिगड़ने लगता है। छोटा सा गड्ढा या छोटा सा पत्थर भी आपकी पूरी साइकल को उछाल देने के लिए काफी होता है।

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यह उस समय बहुत खतरनाक हो जाता है, जब आप एक ऐसी ढलान से उतर रहे हो, जिसकी एक तरफ पहाड़ और एक तरफ गहरी खाई हो। और सिंगल रोड हो, सामने से अचानक कभी भी कोई भी वाहन आ सकता है। और बहुत तेजी से मोड़ हो तो। जब भी यह ढलान तेज हुई कटरा से जम्मू की तरफ शुरुआत में तो मुझे डर लगने लगा। साइकिल के आगे पीछे दोनों डिस्क ब्रेक थे। उसको लगाने के तरीके पर बहुत ध्यान देना पड़ा। हमेशा इस बात का ध्यान रखना पड़ा की पीछे की ब्रेक पहले लगे। और एक वक्त ऐसा आया कि इतनी तेज मोड़ था, इतना तेज था कि मुझे किसी भी हालत में रुकना पड़ा।


तभी वहां पर अचानक एक ऑटो वाला आया और उसने रोका और ऑटो साइड में लगाकर मुझसे हाथ मिलाया और उसने कहा कल मैंने आपको कटरा में देखा था। आप कल कटरा चौक पर भी थे मैंने कहा कल मैं उधमपुर की तरफ जा रहा था और उसने मुझे शाबाशी दी। हमारे बीच दो-तीन मिनट बात हुई मैंने पानी पिया।

फिर मैं आगे की तरफ बढ़ने लगा और इसी तरीके से धीरे-धीरे सुरंगों का आने का सिलसिला शुरू हुआ।

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4 responses to “Kashmir to Kanyakumari by cycle blog 2”

  1. राकेश जी, आपमें वो कौन सी ऊर्जा इस समय काम कर रही होगी ये मुझे बार बार सोचने पर मजबूर कर देता है। कभी कभी मैं यही सोचता हूँ कि काश उन दिनों मैं भी आपके संग यात्रा पर होता। पर ऐसी यात्रा पर निकलना कोई आसान काम नही है। इसके लिए दृढ़ संकल्प और प्राकृतिक प्रेम नितांत आवश्यक है जो बहुत ही कम लोगो मे पाया जाता है। मैं आपके उस पल को भी अनुभव करता हूँ जब आप कन्याकुमारी पहुँचकर भारत का तिरंगा लहराया था। आपके हृदय में उस समय अलौकिक आनन्द की तरंगों का संचार हुआ होगा।

  2. आपके इन शब्दों के लिए धन्यवाद। इस तरह की प्रशंसा से मेरा मनोबल बढ़ता है। मेरी इस यात्रा का अनुभव अद्भुत है। इसीलिए मैंने ये ब्लॉग लिखना शुरू किया है। बहुत ही जल्द मैं एक पुस्तक भी प्रकाशित करने वाला हुँ।

  3. Bohot acche se varnan kiya sir blog mai

  4. Thank You for reading my blog.

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