दूसरा दिन : 6 November 2019
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Blog no. 18
था और एक बहुत बड़ी शंकर भगवान की मूर्ति भी थी। वहाँ पर उस मंदिर के सामने मैंने
कम से कम आधा घंटा आराम किया। वहाँ पर बहुत सारे बंदर थे और मुझे बंदरों
से मुझे अपनी साइकिल (Cycle) को और साइकिल पर लगे हुए सामान को भी बचाना था। वहाँ पर
आराम करने के बाद मैं वहाँ से जालंधर की तरफ बढ़ा। ढ़ालान अच्छी थी पर छोटी थी। सुर्य
अस्त तेजी से हो रहा था और मुझे अंधेरा
होने से पहले अपने रहने के लिए जगह ढूंढनी थी। मुझे उम्मीद थी कि अंधेरे से पहले
नामुमकिन था।
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मैंने किसी से पूछा कि यहाँ पर अगला शहर कौन सा है, तो
उन्होंने बताया कि मुकेरिया नाम की एक जगह है। छोटा सा एक शहर कह लो या छोटा कस्बा कह लो, वहाँ पर आप जा सकते हो और मैंने साइकिल (Cycle) और तेजी से चलाना शुरु किया। अंधेरा बहुत तेजी से
बढ़ रहा था पर दूर-दूर तक कोई शहर नहीं दिख रहा था। फिर बीच-बीच में छोटे-छोटे गांव
आते थे हाईवे के ऊपर। मैंने वहाँ पर पूछा कि यहाँ कोई गुरुद्वारा है रात रुकने के
लिए, तो उन्होंने कहा कि आपको हाईवे से अंदर गुड़गांव की तरफ जाना पड़ेगा, वहाँ पर
आपको गुरुद्वारा मिलेगा। मुझे बड़ा गुरुद्वारा चाहिए था क्योंकि छोटे गुरुद्वारे
में अगर किसी वज़ह से जगह नहीं मिली तो मुझे परेशानी हो सकती है। तो मैंने कई जगह कई
लोगों से पूछा कि हाईवे के ऊपर कोई बड़ा गुरुद्वारा है, तो उन सब ने कहा कि
मुकेरिया में बड़ा गुरुद्वारा है, जहाँ पर आपको रात रुकने की जगह मिल सकती है। मैंने
कहा ठीक है और मैं मुकेरिया की तरफ चल पड़ा।
मुझे यह मालूम पड़ चुका था कि मैं
जालंधर आज नहीं पहुँच सकता। मुकेरिया तो मुझे रुकना ही पड़ेगा। तो मैं मुकेरिया
की तरफ बहुत तेजी से चल पड़ा। जल्दी ही एक बाज़ार आ गया, वहाँ बहुत भीड़-भाड़ थी। जल्दी ही
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लोग मेरी तरफ देखने लगे, सेल्फी लेने लगे। सवाल जवाब करने लगे। जहाँ मैं रुका था
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इसी बीच कुछ और लड़के मुझे
मिले वह भी मोटरसाइकिल (MotorCycle) पर जा रहे थे। मेरे साथ उन्होंने काफी दूर से मोटरसाइकिल पर
चलना शुरू किया। उन्होंने कहा कि भोजन कराना चाहते हैं। मैंने उनको बोला कि आप मुझे रहने की जगह बता दो, गुरुद्वारा या मंदिर तो उन्होंने भी शीतला
माता मंदिर के बारे में बताया और उन्होंने कहा कि आप खाने की चिंता मत करो हम आपके
लिए खाने की व्यवस्था करेंगे। तो मैंने उनसे कहा कि उसकी जरूरत नहीं है। मुझे रहने
की जगह मिल जाएगी तो मैं खाने का इंतजाम कर लूंगा। फिर जैसा मंजीत जी ने जो बताया था मुझे
मैं उसी तरीके से आगे गया। मंदिर पीछे छूट गया था कयोंकि मैं थोड़ा आगे चले गया था।
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