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Cycle Blog no 19 :शीतला माता मंदिर में गुज़ारी दूसरी रात

कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से – 

दूसरा दिन : 6 November  2019

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Blog no. 19

      

kashmir to kanyakumari Cycling Blog Rakesh Sharma
शीतला माता मंदिर : Video

   साइकिल (Cycle) को पार्क किया, अंदर जाकर वहाँ के प्रबंधक थे, उनसे बात करी कि मुझे यहाँ पर रात रुकना है और उन्हें बताया कि मैं कश्मीर से कन्याकुमारी साइकिल (Cycle) से जा रहा हूँ। उन्होंने मेरा आधार कार्ड लेकर रजिस्टर में एंट्री करी और उसके बाद मैंने वहाँ पर हाथ मुँह धोकर खाना खाया। 10/- रुपये में भरपेट खाना खाना बहुत ही अच्छा था। उसे खाना ना कहें तो ज्यादा अच्छा होगा – प्रसाद और उस प्रसाद में खाने के बाद मैंने खीर भी खाई। चावल थे, आलू की सब्जी थी और रोटी भी थी। शीतला माता मंदिर में मैंने खाना खाने के बाद उनसे मैंने कहा मुझे रात रुकना है तो उन्होंने कहा एक टाउन हॉल में आप को हम गद्दा दे देते हैं, आप गद्दा बिछा कर जमीन पर सो जाओ।

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 तब मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं अपनी साइकल (Cycle) को भी अपने पास खड़ा कर सकता हूँ क्योंकि मुझे साइकल (Cycle) पर लगे अपने गेजेटस को चार्ज़ करना था। उन्होंने मुझे उसके लिए हाँ कह दिया। खाना खाने के दौरान कुछ लड़के जो कमरों में ठहरे थे मेरे साथ ही खाना खा रहे थे। उनसे भी मेरी बातचीत हुई। उन्होंने सभी सोशल मीडिया के अकाउंट को फोलो (fol

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low) किया।  मैं बहुत खुश था क्योंकि ये मेरे सफर की दूसरी रात थी। पहली रात मैंने चीची माता के मंदिर में गुज़ारी थी और दूसरी रात मैं शीतला माता के मंदिर में था। अच्छी जगह थी, मुझे बस सुबह उठना है और अपनी साइकल (Cycle) लेकर निकल जाना है। जिस हाॅल में मैं ठहरा था उसी हाॅल में बाथरूम भी था, बाथरूम काफी साफ-सुथरा था। जैसे हाॅटल में होते हैं। उसी हाॅल में उनका किचन भी था जहाँ वो खाना बना रहे थे।


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     जब मैं सोने चला तो एक बुजुर्ग आंटी आईं। उन्होंने कहा कि ऊपर एक काफी अच्छा हाॅल है। वहाँ पर मच्छर भी कम हैं। आप वहाँ पर सो जाओ। पर मैंने कहा कि नहीं मैं यहाँ ठीक हूँ क्योंकि मेरी साइकल (Cycle) भी मेरे सामने ही खड़ी है। इसलिए मैं यहीं सोना चाहूँगा। मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं। फिर उन्होंने मुझे तखिया दिया, दो कम्बल दिये। पहले मेरे पास पतला सा एक ही कम्बल था। फिर उन्होंने मुझे एक बड़ा कम्बल और निकाल कर दिया। अब मेरे पास सोने के लिए सारा बिस्तर था। गद्दा, तखिया, चादर, दो कम्बल। 


     साइकल (Cycle) मेरे सामने चार्ज़ हो रही थी। मैंने वहीं से अपने दोस्त अमज़द को जालंधर में फोन किया। वो इतना हैरान था कि तु मुकेरिया तक आ भी गया। मैंने अपने घर पर भी बात करी। मैंने जो भी फोटो रास्ते में खींची थी उनको एडिट किया। मैंने अब तक जो वीडियो बनाई थीं उनको अपलोड किया। मेरे तीन घंटे तो इसी सब में निकल गए। क्योंकि यात्रा शुरू करने के बाद आज ही मुझे इंटरनेट मिला था। इसीलिए मैंने तब अपनी बहुत सी फोटो और वीडियो यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर अपलोड करी। तब मुझे नहीं पता था कि ये मेरी रोज़ की एक्टिविटी (activity) बनने वाली है। चाहे मैं थका हूँ या न थका हूँ, मुझे रोज दो से तीन घंटे सोशल मीडिया को देने पड़ते थे। क्योंकि अगले दिन की वीडियो बनाने और फोटो खींचने के लिए मुझे फोन में स्पेस चाहिए होता था और ये भी कि अगले दिन पता नहीं चार्ज़िग करने के लिए जगह मिलेगी या नहीं। कहाँ रूकने की जगह मिलेगी। 

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     आज मेरी  Cycle यात्रा का दूसरा दिन था। लेकिन इससे पहले नेटवर्क न होने की वजह से मैंने आज पहली बार अपने सभी सोशल मीडिया के प्लेटफाॅर्म पर अपनी फोटो, वीडियो और लाॅकेशन (location) शेयर करी थी। उसके बाद मैंने अपने मोबाईल, पावर बैंक, हाॅर्न, लाईट सभी को चार्ज़ किया। इस सब में मुझे दो तीन घंटे लग गए। फिर मैं सो गया।

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