कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से –
तीसरा दिन : 7 November 2019
Blog no. 21
उस व्यक्ति को मैंने अपने हिसाब से जितनी मुझे समझ थी, सलाह दी। मैंंने उसको कहा कि हर इन्सान की जंग अपनी खुद की होती है, जो उसे खुद ही लड़नी पड़ती है। मैंने उसे कहा कि उसे दूसरों से उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए कि कौन उसके साथ कैसा बरताव करेगा। विशेषरूप से आपके सबसे करीबी लोग। क्योंकि मेरा ये व्यक्तिगत रूप से मानना है कि आपके नज़दीकी लोग ही आपके सबसे बड़े शत्रु होते हैं, सबसे बड़े दुश्मन होते हैं। और सबसे नज़दीकी मेें माँ-बाप आते हैं, तो अगर मैं इसको इस तरह से कहूँ कि आपके माँ-बाप ही आपके सबसे बड़े दुश्मन होते हैं तो मैं गलत नही हूँ। इसको मैं बाद मे फिर कभी विस्तार से बताऊँगा कि क्यों।
अगर माँ-बाप आपके साथ हैं तो भी और अगर आपके माँ-बाप आपके खिलाफ हैं तो भी आपके दुश्मन होते हैं। कुछ जानकर होते हैं और कुछ अनजाने में बन जाते हैं। बाकी अपवाद हर जगह होते हैं। मैं जो भी कह रहा हूँ वो 100% नहीं हैं, पर अधिकतम हालात को देख कर बोल रहा हूँ।

फिर मै वहाँ से चल पड़ा। बीच-बीच मे मैंने देखा कि बहुत सारे टेन्ट लगा करके कुछ बनजारे जैसे लोग रह रहे हैं जो कि गुड़ बना रहे हैं। आते जाते लोग अपनी गाड़ी और स्कूटर रोक रोक कर उनसे गुड़ खरीद रहे हैं। ऐसे ही एक टेन्ट के बाहर मैंने अपनी साइकल रोकी क्योंकि मैंने अपनी जिन्दगी में इससे पहले कभी गुड़ बनते हुए नहीं देखा था। और इतनी करीब से तो मतलब ही नहीं। इसलिए मैं वहाँ रूक कर उनको देखने लगा।उनके साथ जो लोग काम कर रहे थे उसमें कुछ औरतें थी, कुछ बच्चे थे छोटे छोटे, और कुछ आदमी लोग भी थे। फिर मैंने थोड़ी देर बाद उनसे पूछा कि क्या मैं गुड़ को बनते हुए देख सकता हूँ, तो उन्होने कहा हाँ, आप देख सकते हो।
उन्होंने मुझे बैठने के लिए चारपाई दी।
Cycle Blog Rakesh Sharma
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