कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से –
तीसरा दिन : 7 November 2019
Blog no. 23
जैसे-जैसे जालन्धर (Jalandhar, Punjab) शहर आने लगा, जैसे ही जालन्धर की शुरूआत होने लगी तो बहुत सारी जानी-पहचानी जगह आने लगी क्योंकि मेरा जन्म स्थान (birth place) जालन्धर है और मेरी बचपन की पढ़ाई (education) जालन्धर मे ही हुई है कुछ साल की, बीच बीच में। जैसे मैंने अपनी दसवीं (10th class) की पढ़ाई तक 13 स्कूल अलग-अलग राज्यों मे बदलें हैं तो उसमें से मैंने तीन बार जालन्धर के अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई करी है। एक साल, कभी दो साल अलग अलग समय पर।
तो जब रास्ते में मैंने जानी पहचानी जगह देखी तो बड़ी खुशी सी हुई कि शुरू से लेकर आज तक की यात्रा के दौरान पहली बार कोई जानी पहचानी जगह आई है।
यहाँ मुझे मेरे स्कूल के दोस्त मिलेंगे। मेरा सबसे अच्छा मित्र (best friend) अमज़द वो भी मुझे यहाँ मिलेगा। मेरी मम्मी (mother) यहाँ रहती हैं, हालांकि वो अभी यहाँ नहीं हैं, वो इस समय दिल्ली में हैं, मेरे घर पर और मैं उनके शहर में हूँ। मेरी मम्मी ने दो शादियाँ (marriage) करी थी। ये मेरी मम्मी की दूसरी शादी वाला घर है, वो यहीं रहती हैं। मैं इस समय उन्हीं के घर जा रहा हूँ और वो इस समय दिल्ली में हैं। यहाँ वो अपने दूसरे बेटे गौरव के साथ रहती हैं, वो घर पर ही है। मेरी उससे बात हो चुकी है, वो मेरा ही इंतज़ार कर रहा है घर पर। लगभग चार बज चुके थे।
मैं साइकल (cycle) कुछ धीरे ही चला रहा था। शायद इसलिए कि ये मेरा जाना-पहचाना शहर था। बड़ा शहर है, यहाँ कोई डर वाली बात भी नहीं है। इसलिए साइकल (cycle) को धीरे-धीरे चलाते हुए, चीज़ों को आराम से देखते हुए झा रहा था। वहाँ रास्ते में साई दास स्कूल आया, बड़ा साई दास स्कूल बोलते हैं उसको।
उस स्कूल के पीछे, हमारे एक टीचर जो हमें आठवीं क्लास में पढ़ाते थे, हम उनको फौज़ी सर बुलाते थे, उनका घर था। उनके यहाँ हम ट्यूशन पढ़ने आते थे। उस स्कूल से पहले माहिरा गेट आया, माहिरा गेट जालन्धर में काॅपी-किताब या स्टेशनरी का थोक का बाज़ार है। उससे पहले देवी तालाब मन्दिर (Devi talab temple) आया जो जालन्धर में काफी मशहूर है। मैंने उसको बाहर से ही देखा। मैं उसके अन्दर नहीं गया क्योंकि शाम को वहाँ मेले जैसा माहौल बन जाता है।
बचपन में हम वहाँबहुत जाते थे, अब भी कभी-कभी जाते हैं। पर इस समय उस मन्दिर (temple) को देखने में और अभी जब मैं साइकल से कश्मीर से कन्याकुमारी जा रहा हूँ और उस बीच में इन जगहों को देखने मे बहुत बड़ा फर्क़ था। इस समय मैं एक यात्री था, ये मेरे रास्ते की एक जगह थी। और मैं एक ऐसी यात्रा पर निकला हुआ था जिसमें मुझे नहीं पता था कि मैं वापिस अपने घर पहुँचुंगा भी कि नहीं। ये यात्रा पूरी कर पाऊँगा कि नहीं कर पाऊँगा।
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