मेरी बात को मानना या ना मानना आपकी अपनी समझ पर निर्भर है। मेरा किसी पर कोई दबाव नहीं है ना ही मैं कोई पक्षपात करके आपको यह बातें बताना चाहता हूं। मेरा साधारण सा सोचना है कि जिन बातों से मुझे अपने जीवन में बदलाव दिखा और मेरे ही सामने अगर और लोगो को उसकी जरूरत है और वह नियम मुझे पता है तो मुझे क्यों नहीं बताना चाहिए।
दोस्तों नमस्कार
मेरा नाम राकेश शर्मा है। मैं आज का ब्लॉग लिख रहा हूं नकारात्मकता के विषय पर। मैं आपको बता दूं कि आप नकारात्मकता को महज एक छोटा सा शब्द समझने की गलती ना करें। यह बहुत ही खतरनाक शब्द है हमारे जीवन का। अगर मैं सही तरीके से कहूं तो हमारी जीवन की सारी समस्याओं की जड़ इस शब्द में छुपी हुई है। यह एक शब्द नहीं है। यह एक बीज है जो तकरीबन – तकरीबन सभी मनुष्य के अंदर होता है और जिन समस्याओं से हम अपनी दिनचर्या की जिंदगी में, रोजमर्रा की जिंदगी में हम सामना करते हैं वह सभी समस्याएं इसी शब्द का छोटा सा रूप है । समस्या तो केवल पत्ते हैं, शाखाएं हैं। उनकी जड़ यह शब्द नकारात्मकता है । यह एक बीज है जो बचपन से ही हमारे मस्तिष्क में बो दिया जाता है। जाने अनजाने में और यह सदियों से चला रहा है। वह बीज के अंकुर फूटते हैं, वह बीज पौधा बनता है, फिर वह पेड़ बनता है, उसकी शाखाएं निकलती है और उसकी फिर पत्तियां आती है, और वह घना और बड़ा पेड़ बन जाता है। शाखा हमारे जीवन की बड़ी समस्याएँ है और पत्तियां हमारे जीवन की छोटी समस्याएं हैं, रोजमर्रा की समस्याएं हैं उसकी शाखाएं हमारे जीवन की बड़ी समस्याएं हैं। जिनसे हम जूझते है । हम कभी कबार पत्तियों के टूटने से खुश हो जाते हैं कि हमने समस्या हल कर दी और मालूम पड़ता है कि कल कोई और समस्या होगी परसों कोई और। बड़ी समस्याओं की भी अगर बात करें जिन्हें मैंने शाखा है कह कर संबोधित किया है। उन्हें भी हम कई बार काट देते हैं और हम सोचते हैं हमने जीवन पर विजय पा ली पर हम देखते हैं कि हम तो वहीं खड़े होते है। मैं इसको पूरे विश्लेषण से आपको बताऊंगा। यह ब्लोग लंबा हो सकता है इसलिए आप इसका अगला भाग भी पढ़ सकते हो क्योंकि अगर इसको विस्तार से नहीं बताया तो यह बात को समझना मुश्किल होगा और इस बात को ना समझो तो चल जाएगा पर अगर आपने गलत समझ लिया तो और नुकसान हो सकता है और अगर मेरे बताए गए तरीकों से आपके जीवन में कुछ भी लाभ पहुंचता है तो आप मेरे ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा उन लोगों में शेयर करें जिन्हें की जरूरत है। तकरीबन तकरीबन सभी लोगों को उसकी जरूरत है। बच्चे पढ़ेंगे तो उन्हें एक स्पष्ट दृष्टिकोण मिलेगा।
मैं कोई संत, महात्मा, प्रवचन किसी किताब की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि ये सब आप लोगों ने बहुत सुना होगा, पढ़ा होगा पर मेरे पास ऐसे बहुत सारे लोगों ने संदेश भेजें हैं जिन्होंने मुझे यह कहा है और कई लोगों से मेरी बात भी हुई है कि हम जानते हैं नाकारात्मकता एक बहुत बड़ी समस्या है और इसकी वजह से जीवन में बहुत सारी परेशानियां आती हैं और हम चाहते तो हैं कि ये हमसे दूर रहे। पर हम इसको अपने जीवन से निकाल नहीं पा रहे हैं। हमने कई किताबें पढ़ी, हमने कई संतों के प्रवचन सुने, हमने कई जीवन के सिद्धांत जाने पर जब हम इसको लागू करने जाते हैं तो इसको लागू नहीं कर पाते हैं और अगर लागू कर भी लेते हैं, कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि हमने लागू भी किया पर कोई परिणाम नहीं मिला।
तो मैं आज आपको मैं अपने इस ब्लॉग, इस लेख के माध्यम से कुछ ऐसे तरीके बताना चाहूंगा जिससे कि आप आसानी से नकारात्मकता को अपने जीवन से निकाल सकते हैं इसके लिए मुझे पहले आप को चरणबद्ध तरीके से (स्टेप बाइ स्टेप) यह बताना होगा_ _ _ _
॥१॥ नाकारात्मकता क्या है
॥२॥ नाकारात्मकता की पहचान
॥३॥ नाकारात्मकता को कैसे रोके
॥४॥ पहले से आई हुई नाकारात्मकता को कैसे निकले
॥५॥ अब शुरू करे सफ़र सकारत्मकता की ओर
ॐ खुशहाल जिंदगी आपका इन्तज़ार कर रही है
“खुशहाल जिंदगी से मेरा मतलब एक ऐसी जिंदगी जिसमें लालच ना हो डर ना हो।”
आपको लगेगा ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि लालच और डर तो हमें जन्मजात मिला है, पैदाइशी मिला है, इसलिए यह कभी नहीं जा सकता। ऐसा आप लोगों का मानना है तो मैंने वही कहा, जो हमारा आज का विषय है। नकारात्मक जब सोच होती है तो हमें हर चीज में ना ही नजर आता है। जब एक जानवर, एक पशु और पक्षी सकारात्मक रह सकते हैं तो हम क्यों नहीं रह सकते। लालच और डर जो हमें बचपन से मिला है समाज के द्वारा, मां बाप के द्वारा, अध्यापक के द्वारा, स्कूल के द्वारा, परंपराओं के द्वारा, धर्म के द्वारा, स्वर्ग का लालच और नर्क का डर, विद्यालय में पास होने का लालच और फेल होने का डर, कामयाब होने का लालच, नाकामयाब होने का डर।
“कब तक डरते रहोगे अब तो जी लो अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर।”
यह सभी नकारात्मक के पेड़ की शाखाएं हैं अगर आप इन्हें खत्म कर दोगे तो वह पेड़ वही रहेगा ।आपको वह पेड़ की जड़ खत्म करनी है। मतलब नकारात्मक दृष्टिकोण को खत्म करना है । खुशहाल जीवन से मेरा मतलब है कि एक ऐसा जीवन जिसमें कुछ आपके पास जो हो आप उसके लिए संतुष्ट ना हो और जो कुछ आपके पास ना हो उसके लिए आप असंतुष्ट ना हो। मतलब तुष्टीकरण नहीं होना चाहिए ।किसी चीज के मिलने पर वह एक्साइटमेंट, खुशी न हो, किसी चीज के जाने पर बहुत ज्यादा दुख न हो क्योंकि जब आप एक बार सकारात्मक दृष्टिकोण अपना लेते हैं तो आपको पता है कि जो हुआ वह बहुत अच्छा हुआ मेरे साथ और जो नहीं हुआ शायद उसमें इससे भी ज्यादा अच्छा छुपा था।
“मन का हो तो अच्छा ! मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा !”
और मुझे पूरी उम्मीद है कि 43 दिन अपने जीवन में मेरे द्वारा बताई गई प्रक्रिया जो कि मेरे द्वारा बताई गई का मतलब यह है कि मैंने खुद यह सीखी यात्राएँ करके, लोगो से मिलके, जीवन से सबक सीख कर, घाट-घाट का पानी पी कर न की किसी धार्मिक किताबों से, न किसी धर्म गुरू से और न ही किसी Motivator से, ये मेरी अपनी कमाई हूई बाते है जिसमे मै हमेशा बदलाव के लिए तैयार हूँ और अपने जीवन में अजमाई है।
अपनी लाइफ में 43 दिन के अंदर आप इसको पूरी तरह अपने जीवन में लागू कर सकते हैं। उसके बदलाव आप भूल नही सकते।
यहां बात आपके निजी जीवन की नहीं है क्योंकि अगर आप सकारात्मक दृष्टिकोण के होते हो तो आपके बच्चे भी होते हैं, आपकी पत्नी होती है, आपका परिवार भी हो सकता है ,आपके पड़ोसी भी हो जाते हैं तो यहां बात सिर्फ एक व्यक्ति के जीवन की नहीं है। सोचो अगर हर घर का एक मुख्या सकारात्मक दृष्टिकोण का हो तो वह अपने बच्चों को भी सकारात्मक दृष्टिकोण देने में कामयाब होगा और आने वाले दिन में नकारात्मकता की कमी होगी।
“नकारात्मकता कभी खत्म नहीं हो सकती क्योंकि वह सकारात्मकता का पूरक है।”
हम सकारात्मकता की बात कर रहे हैं क्योंकि नकारात्मकता का अस्तित्व है। इसका अगला कदम भी है जिसके बारे में मैं कभी आने वाले दिनों में बात करूंगा। कि ना हमे नाकारात्मकता चाहिए, ना हमें सकारत्मकता चाहिए। एक सरल जीवन चाहिए । हम अपना कीमती अमूल्य जीवन इन चीजों में सोच जिंदगी जी रहे हैं। जिसमें काले से बचना और सफेद को ओड़ने का चक्कर ही ना हो।
मैं आशा करता हूं कि हम इसको शुरू करेंगे जल्द से जल्द अपने जीवन में अपनाना और 43 दिन अपनी लाइफ में हम इसको लागू करेंगे। जो जोश पहले दिन होगा वही आखिरी दिन होना चाहिए। जो पहले दिन की हमारी मानसिकता, उत्तेजना होगी वही अमित 43वे दिन चाहिए। यह नहीं कि हर 5 दिन बाद हम जज करने लगे कि अपने आपको फर्क तो पड़ा नहीं। फर्क तो पड़ा नहीं हो सकता है क्योकिं किसी को 21वे दिन तो किसी को 40 दिन फर्क पड़ता है । हमें निस्वार्थ बिना रिजल्ट ओरिएंटेड होते हुए, बिना फल की कामना करते हुए करना है। तो इससे आप एक बहुत बड़ा बदलाव अपने जीवन में पाएंगे। हमेशा के लिए जीवन सरल हो जाएगा। आप हिंदू मुसलमान, काला सफेद, अमीर गरीब, सुख-दुख, खुशी गम से बहुत ऊपर उठकर सोचने लगेंगे। आपको कहीं कोई खामी नजर नहीं आएगी।
“आपको गिलास आधा भरा हुआ दिखेगा पानी से न की आधा खाली ।
और अगले पड़ाव में आपको महसूस होगा कि गिलास पूरा भरा हुआ है आधा पानी से और आधा हवा से।”
चलिये शुरू करते हैं
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43 दिन ही क्यों बोला ?
To be continue ………..
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