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Cycle Blog 24 : Mere Bachpan ka Shahar

कश्मीर से कन्याकुमारी साईकिल से – 

तीसरा दिन : 7 November  2019

Blog no. 24

    अगले कई दिन मेरे साथ क्या होने वाला है, कितने किलोमीटर मुझे चलानी है साइकल (cycle), किस-किस तरह के लोग मिलेगे, कैसा माहौल होगा, मौसम होगा, तो मुझे मालूम नहीं था। इसलिए उस समय उन जगहों को देखने का दृष्टिकोण एकदम अलग था। मन्दिर के बाहर मैं करीब पाँच मिनट खड़ा रहा, उसको देखता रहा। उस पाँच मिनट के अन्दर ही बचपन की सारी यादें दिमाग मे दौड़ गई। पहले ये मन्दिर ऐसा होता था – वैसा होता था। जब भी वहाँ जाओ कुछ नया मिलता है, मन्दिर बहुत बड़ा है। हर बार उसमें कुछ नया विकास हो गया होता है।  

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उससे थोड़ा सा आगे ही माहिरा गेट आता है जहाँ हम क्लास (class) बदलने पर नयी किताबें खरीदने और पुरानी किताबें बेचने भी आते थे। वहाँ भी अपनी साइकल (cycle) रोक कर मैं उस मार्किट को देख रहा था अपनी वही पुरानी यादें ताज़ा कर रहा था। मेरे देखते ही देखते वहाँ तीन-चार लोग आ गए। वो वहाँ के दुकानदार (shopkeepers) थे। वो अपनी दुकान के अन्दर बैठे थे। उन्होंने मुझे देखा तो वो बाहर आए और उन्होंने लगभग 10-15 मिनट मेरे साथ बात करी। उन्होंने मुझे ज़ोर दिया कि मैं उनके साथ चाय पीयूँ या कुछ खालूँ। लेकिन मैने उनको बताया कि मुझे बस पास मे ही जाना है, ज्योति चौक तक। ज्योति चौक वो जगह है जहाँ मेरी मम्मी रहती हैं। मुझे वहीं पर रूकना था। इसीलिए मैंने उनको बोला कि चाय-नाशते की ज़रूरत नही है। उन्होंने मेरे साथ वीडियो बनाई, कई फोटो खीचीं। उनको देख कर और भीड़ इकटठा हो गई क्योंकि वो एक होलसेल मार्किट (wholesale market) है। लगभग 20 मिनट बाद मैं वहाँ से निकला।

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  मैं जानबूझ कर धीरे-धीरे साइकल (cycle) चलाते हुए ज्योति चौक की तरफ बढ़ रहा था। जानबूझ कर मैं लोगों को रोक-रोक कर उनसे रास्ता पूछ रहा था ताकि मैं उनका रिएकशन (reaction) जान सकूँ। मुझे जब भी किसी से बात करनी होती थी तो मैं लोगों से रास्ता पूछ लेता था। जब मुझे दिखता था कि ये आदमी मुझसे बात तो करना चाहता है लेकिन झिझक रहा है कि पता नहीं मैं बात करूँगा या नहीं, कैसे जवाब दूँगा। क्योंकि मैंने एक साइकलिस्ट (cyclist) की ड्रेस (dress) पहनी हुई थी। तो मैं खुद ही उनसे किसी बहाने से बात कर लेता था। जबरदस्ती पूछ लेता था कि ये जगह कितनी दूर है, कहाँ पर है। फिर वो खुल कर मेरे साथ बात करने लगते थे, पूरी जानकारी (information) भी देते थे। ये तरीका मेरा हमेशा काम करता था लोगों के साथ जुड़ने में। 

     फिर ज्योति चौक (jyoti chowk) आ गया, मैं अपनी मम्मी के घर पहुँच गया। गौरव से मिला। मेरा ज़ुखाम बहुत बड़ गया था। उस जुखाम की वज़ह से मेरे सिर मे दर्द होने लगा था। वहाँ पहुँचते ही एक बहुत ही रिलेक्स (relax) या सुकून, जैसे कि यात्रा अभी खत्म नहं हुई है लेकिन मैं एक सेफज़ोन (safe zone) में आ गया था कि मैं जैसे अपने घर पर आ गया हूँ।

Cycling blog kathmandu to delhi   
     कमाल की बात है कि आसपास से कोई भी मुझसे मिलने नहीं आया था, शायद गौरव ने भी किसी को नहीं बताया होगा। वहाँ जो उनके पड़ोसी थे वो मुझसे बाद में मिलने आए। असल में उनको मुझसे ज़्यादा मेरी साइकल (cycle) मे उत्सुकता थी। वो मुझसे ज्यादा मेरी साइकल (cycle) के बारे में जानना चाहते थे। क्योंकि वो जानते थे कि ढ़ाई महीने (two months before) पहले भी मैं इसी साइकल से काठमाडू से दिल्ली (Kathmandu to New Delhi) आया था। तो उनको मौका मिल रहा था उसी साइकल को देखने का। उसके बाद शाम को ही मेरा दोस्त अमज़द मिलने आया था क्योंकि वो जानता था कि मैं शाम तक वहाँ पहुँच जाऊँगा। उससे रास्ते में भी मेरे साथ बात हुई थी। अमज़द बहुत ही टेलेन्टिड (talented) हेयरड्रेसर (hair dresser) है, उसका काफी बड़ा सेलून (salon) है जालन्धर में। उसने भी बहुत मेहनत करके अपने इस मुकाम को बनाया है। हम दोनो की टयूनिग (tunning) और तालमेल बहुत अच्छा बैठता है। वो मेरे बारे में सब जानता है, इसलिए वो मेरी इस तरह की सारी हरकतों और पागलपन्ती को समझता है, काफी हद तक। और वो मुझे सपोर्ट (support) भी करता है। गिनती के एक दो लोग ही हैं ऐसे उनमें से एक अमज़द है। वो मुझसे शाम को ही मिलने आया।
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My friend Amzad

     
मैंने जालन्धर के अन्दर नौवीं (9th) क्लास (class) तक पढ़ाई करी थी और दसवीं में जालन्धर से चला गया था। जब मेरी मम्मी ने दूसरी शादी करी थी उसके कुछ समय बाद ही मैंने वो घर छोड़ दिया था। तो उस समय जो मेरे क्लासमेट ( classmates) थे, जिनमें से एक अमज़द था। और भी कुछ स्टूडेन्ट (students) जो मेरे फेसबुक (facebook) पर जुडे़ हुए थे। फेसबुक (facebook) और मैसेन्ज़र (messenger) के द्वारा मेरे कुछ और पुराने दोस्त, जो मुझे स्कूल (school) छोड़ने के बाद आज तक नहीं मिले थे। इससे पहले हमारी कभी कोई  बातचीत नहीं हुई थी। ज्यादा से ज्यादा एक दूसरे की फोटो (photo) लाइक (like) कर दी, इससे ज्यादा हमारी कोई बातचीत नहीं हुई थी।  लेकिन आज जब मैं वहाँ पहुँचने वाला था तो मुझे मैसेन्ज़र (messenger) पर काॅल (call) आई। मेरे दोस्त गौतम पुरी की। उसने कहा कि हम मिलने आएँगे। क्योंकि मैं अपनी लोकेशन (location) तो डालता ही रहता था। भूपेश भारद्वाज और मेरा एक खास दोस्त दीप भाटिया। तो अमज़द उसी दिन आ गया था मुझसे मिलने।

 
http://www.bloggerrakesh.com/2020/09/what-is-astrology.html 

 Cycling Blog by Rakesh Sharma

2 responses to “Cycle Blog 24 : Mere Bachpan ka Shahar”

  1. Very well written,keep it up.

  2. Thanks for reading and appreciating. Keep reading my all blogs.All the best

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