तीसरा दिन : 10 November 2019
Blog no. 27
पीछे मैंने एक जगह देखी थी, जहां पर जानवरों की खाल उतारी जाती थी। वहाँ पर बहुत बदबू आ रही थी। वहाँ पर मरे हुए जानवरों की खाल अलग करी जाती थी। उसके लिए मुझे थोड़ा रोड से अन्दर जाना पड़ता, इसलिए मैं नहीं गया वर्ना मैं उसका भी वीडियो बना कर लाता।
तभी एक कार मेरे आगे आकर रूकी। गाड़ी में से कुछ लोग उतरे, उन्होंने आकर मुझसे हाथ मिलाया। मुझसे मेरी यात्रा का कारण पूछा। वही सब सवाल किए जो अब तक सब लोगों ने पूछे थे। मैंने उनके सब सवालों के जवाब दिए। उन्होंने पूछा कि आप रात को कहाँ रूकोगे। तो मैंने उनको बताया कि किसी भी मंदिर, गुरूद्वारा, या कोई धर्मशाला, जो भी मिल जाएगा। ऐसे ही हमारी बातें होती रहीं। उन्होंने भी मेरी बहुत हौंसला अफजाई करी। उन्होंने मेरे साथ फोटो ली और बोेलेेे कि हम ये फोटो अपने फेसबुक पर शेयर करेंगे ताकि आपको सपोर्ट कर सकें।
उनमें से एक लड़का पीपल फॉर एनिमल से भी जुड़ा हुआ था। जब हमारी बातें चल रही थी तभी उनमें से एक लड़के ने अपनी ज़ेब में से एक नोट निकाला और मुझे दिया। मैंने उनको मना किया कि मुझे नहीं चाहिए, हालाँकि मुझे जरूरत थी उसकी। पर मुझे झिझक और शर्म लग रही थी। मेरे मना करने पर उन्होंने कहा कि आप इसको ऐसे मत समझो कि हम आपको पैसे दे रहे हैं। आप जब भी इन पैसों को खर्च करोगे तो हमें लगेगा कि हम भी इस यात्रा में शामिल हैं। ये सब बोलते बोलते उन्होंने वो नोट मेरी जैकट की जेब में डाल दिए। फिर मैंने उनको धन्यवाद कहा। फिर मैं वहाँ से चल पड़ा। आगे जाकर मैंने देखा कि वो 500 का नोट था।
कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा था कि मुझे रास्ते में किसी ने पैसे दिए हैं और मैंने लिए हैं। पर हकीकत में मुझे उस पैसे कि ज़रूरत भी थी। क्योंकि अगर मुझे कोई मन्दिर या गुरूद्वारा नहीं मिला तो मैं होटल में रूक सकता हूँ खाना खा सकता हूँ। मुझे इस बात कि खुशी भी थी। मेरे पास 2500/- रूपये में से कुछ 200-300 रूपये बचे थे, जो मैं घर से लेकर चला था। क्योंकि बाकि पैसे कटरा तक पहुँचने और वहाँ रूकने और वहाँ से अपनी यात्रा शुरु करने तक खर्च हो चुके थे। इसलिए 500 रूपये के आने का मतलब था एकदम से इज़ाफा हो जाना। ये मेरे लिए एक बहुत बड़ी बात थी इसलिए मैंने उसे एक डायरी में नोट किया। मैंने उस जगह का नाम और तारीख भी लिख ली।
फिर मैं वहां से चल पड़ा। मुझे लग गया था कि मैं आज चंडीगढ़ तक नहीं पहुँच पाऊँगा, पर हाँ मैं रोपड़ तक पहुँच सकता हूँ। मैं रास्ते में लोकल लोगों से जानकारी लेता रहता था। ये काम मैं लगातार करता रहता था। जैसै कि माहौल क्या चल रहा है, कहीं कोई दंगे तो नहीं हो रहे या कोई अफवाह तो नहीं फैली हुई है, कोई लूटपाट तो नहीं हो रही है? मतलब रास्ता सुरक्षित है या नहीं? तो सब लोगों ने यही कहा कि रोपड़ आएगा तो आप वहां रूक सकते हो। तो मैं समझ गया था कि मुझे आज रात रोपड़ में रूकना पड़ेगा। फिर मैं रोपड़ की तरफ बढ़ता रहा।
अब शाम के 4 या 5 बज चुके थे। मौसम ठंडा होने लगा था। अँधेरा भी जल्दी होने वाला था, धुंध की वजह से। तो मैं अपनी साइकल को तेज़ी से चलाने लगा। क्योंकि अभी वहाँ पहुँच कर मुझे रहने का इंतजाम भी करना था।
तभी एक लड़का स्कूटर पर मेरे साथ साथ चलने लगा और वो मुझसे इंगलिश (English) में बात करने लगा। उसने मुझसे इंगलिश (English) में कई सवाल पूछे। जैसे कि मेरा नाम, मैं कहाँ से आया हूँ, यात्रा का कारण और बहुत कुछ। मैंने सोचा कि मैं विदेशी तो नहीं लग रहा हूँ, फिर ये मुझसे इंगलिश में सवाल क्यों पूछ रहा है? कहीं ये मुझे विदेशी तो नहीं समझ रहा है? इसलिए मैंने उसे कुछ सवालों के जवाब हिन्दी में दिए। पर वो फिर भी मुझसे इंगलिश में ही बात करता रहा। मैने उसको कुछ जवाब पंजाबी में भी दिए, क्योंकि मुझे पंजाबी भी आती है, पर वो फिर भी इंगलिश में ही बात करता रहा। मुझे भी जितनी इंगलिश आती थी, उतना उसे इंगलिश में जवाब देता रहा। फिर उसने कहा कि अगर आप मेरे घर चलेंगे तो मुझे खुशी होगी।
मैंने उसको कहा कि मुझे रोपड़ पहुँचना है और अँधेरा भी होने वाला है। तो मुझे दिक्कत हो जाएगी। पर वो बोला कि मेरा घर हाईवे पर ही है और रास्ता बिल्कुल सीधा और सुरक्षित है। अगर आप मेरे घर चलेंगे और चाय पायेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
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