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कुम्भ , अर्ध कुम्भ , पूर्ण कुम्भ और महा कुम्भ
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Image by Rajesh Balouria from Pixabay
दोस्तों,
आज हम जानते हैं कि कुम्भ मेला, अर्ध कुंभ मेला, पूर्ण कुंभ मेला और महाकुंभ मेला क्या होता है और यह कब और कहां लगता है। इन सभी कुंभ की गणना कैसे होती है। यह सब हम आज जानेगे।
कुम्भ मेला :-
भारत में कुंभ मेला चार स्थानों पर लगता है।
- महाराष्ट्र के नासिक
- मध्य प्रदेश के उज्जैन
- उत्तराखंड के हरिद्वार
- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज
कुंभ मेला हर 3 वर्ष बाद आयोजित होता है और बारी बारी से चारों जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है इस वजह से एक ही स्थान पर दोबारा कुंभ मेला 12 वर्ष के बाद लगता है इस मेले को हम कुंभ मेला कहते हैं। 2021 मे ये कुम्भ मेला हरिद्वार मे आयोजित हो रहा है ।
कुंभ मेले की गणना कि यह कब और किस स्थान पर लगेगा यह ग्रहों के गोचर पर निर्धारित होता है। इसमें मुख्य रूप से सूर्य तथा बृहस्पति ग्रह के गोचर को देखा जाता है।
Image by Rajesh Balouria from Pixabay
दोस्तों अब हम जानते हैं अर्ध कुंभ मेले के बारे में
अर्ध कुम्भ मेला :-
प्रत्येक 6 वर्ष बाद केवल प्रयागराज तथा हरिद्वार में लगने वाले कुंभ मेले को अर्ध कुंभ मेला कहा जाता है।
पूर्ण कुम्भ :-
पूर्ण कुंभ मेला केवल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में ही लगता है। यह 12 वर्ष बाद लगता है। प्रयागराज में ही पूर्ण कुंभ मेले के लगने की वजह यह है कि ऐसी मान्यता है की अमृत कलश में से धरती पर गिरने वाली पहली बूंद अमृत की प्रयाग में गिरी थी। इसलिए पूर्ण कुंभ मेला 12 वर्ष बाद प्रयागराज में लगता है।
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महा कुम्भ :-
महाकुंभ केवल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में ही लगता है यह 144 वर्ष बाद लगता है इसका प्रयागराज में ही लगने का कारण यह है कि अमृत कलश की पहली बूंद धरती में प्रयागराज में गिरी थी। इसलिए महाकुंभ यहां पर लगता है। यही समान वजह पूर्ण कुंभ के लिए भी है पर इस महाकुंभ को 144 वर्ष बाद इसलिए लगाया जाता है क्योंकि देवताओं का 12 वर्ष हमारे 144 वर्ष होते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवताओं का 1 वर्ष धरती वासियों के लिए 12 वर्ष के समान है इसलिए देवताओं की गणना को लेते हुए 144 वर्ष बाद प्रयागराज में जब कुंभ मेला लगता है तो उसे महाकुंभ मेला कहा जाता है।
कुंभ मेले में विशेष तौर पर स्नान का बहुत महत्व है।
Image by Rajesh Balouria from Pixabay
कुंभ मेले में सभी लोग पवित्र नदियों में स्नान करके विशेष पूजा अर्चना करते हैं। सभी लोग ग्रहों की, अपने पितरों की, तथा सूर्य देव की पूजा करते है।
कुंभ मेले के शुरू होने पर विशेष स्नान शाही स्नान होते हैं। जिसमें साधू सन्यासियों के अखाड़े हिस्सा लेते है। वह सबसे पहले स्नान करते हैं। इनमें कई बार इस बात को लेकर होड़ भी लगती है।
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दोस्तों
आशा करता हूं आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी।
आप अपने विचार मुझे कमेंट करके बताएं।
यह भी बताएं कि आप और किस विषय में जानना चाहते हैं ताकि मैं आपके उस विषय पर जानकारी एकत्र करके उस पर एक ब्लॉग लिख सकूं और आप उसे पढ़ सके। अपने विचार अवश्य मुझे बताएं।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक कि मेरी साईकिल यात्रा जो कि मैंने बिना पैसों के की थी उसके भी आप ब्लॉग पढ़ सकते हैं।
धन्यवाद।
राकेश
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