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zomato बंगलूरू की घटना सबसे बड़ा दोषी कोई और ही निकला

Zomato Bangalore 

ज़ोम्मेटो (Zomato) की घटना से आप क्या समझते हो  ?

zomato

 

नमस्कार दोस्तों,
 यह ब्लॉग में एक ऐसे टॉपिक पर लिख रहा हूं जो टॉपिक कोई बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। एक साधारण सी घटना है। जो हिंदुस्तान की इतनी बड़ी अबादी में, 135 करोड़ की आबादी के बीच में होती रहती है।
 तो इस साधारण सी घटना के ऊपर मैंने यह ब्लॉग लिखने का इसलिए फैसला किया क्योंकि इसके पीछे की जो मानसिकता है वह साधारण नहीं है और इससे हम अपने देश और अपने देश के लोगों को काफी हद तक समझ सकते हैं। इसलिए मैंने इस घटना को थोड़ा सा तवज्जो देते हुए यह लिखने का फैसला किया ।
#zomato
दोस्तों आप इसको इस नजरिए से देखिए कि
एक  लड़की को भूख लगती है। वह एक फूड डिलीवरी एप से खाना मंगवाती है। एक आदमी जो थोड़े से पैसे महीने के कमाने के लिए वहां पर डिलीवरी ब्वॉय की नौकरी करता है।
अब होता यह है कि वह लड़की पढ़ी लिखी है, बेंगलुरु जैसे एक मेट्रो सिटी में रहती है और जहां तक उसकी बातचीत से पता लगता है कि वह एक अच्छी फैमिली से सम्बंध रखती है।
मतलब हम यह नहीं कह सकते कि वह कोई अनपढ़, जाहिल, गवार है या किसी सलम मे रहती है। या ऐसे किसी ऐसे इलाके से आई है जहाँ बहुत गरीबी हो,जिसे बचपन में सुविधाएं ना मिली हो।
zomato
 यह बात कहां से आई थी फ्री में भोजन मिल जाए। यह  मानसिकता कहां आई है। क्या आपको यह नहीं लगता कि यह वही मानसिकता वही है जो आपने देखा होगा की सड़कों पर जब लंगर लगता है तो लोग कैसे टूट कर पड़ते हैं।क्या आपको कभी उनको देखकर ऐसा लगा कि वह प्रसाद चख रहे हैं?
बस वो वहां से गुजर रहे होते है और अचानक उनको भूख भी लग जाती है। इसे फ्री मानसिकता कहते है। फ़्री में मिल रहा है तो खा लो। हिंदुस्तान के अंदर बारगेनिंग करने की क्षमता है कि मतलब आपको ₹100 की चीज अगर 50 की भी मिलेगी तो भी आप बोलोगे कि नहीं इसको आप 25 का लगाओ और 25 की मिले तो आप फ्री मे देने को बोलोगे और अगर आपको फ्री मे मिले तब आपको एक से ज्यादा चाहिये। ये इंडिया की मानसिकता बन चुकी है। सभी की तो नहीं कहूंगा पर ज्यादातर लोगों की।
 यह घटना भी उसी मानसिकता को दर्शाती है। अब इसमें बात यहां पर खत्म नहीं होती है। जब उस लड़की ने रोते हुए वीडियो डाला तो हम तमाम लोगों ने उसका साथ दिया और उसकी बात को सच मान लिया।
यह इस बात को दर्शाता है कि हमारे यहां पर हम महिलाओं को कितना नाजुक और ऐसा समझ के चलते कि हर समय वही सही होंगी और उन्हीं पर अत्याचार हुआ होगा। यह भी एक तरह से महिलाओं और पुरुषो मे एक अंतर पैदा करता है जो की दोनो के लिए ही घातक है।
यह भी एक मानसिकता है। जिसकी वजह से लोगों ने तुरंत उसके ऊपर विश्वास करके और उसके फेवर में कमेंट कर दिए। एक तरह का एक अभियान चल गया और वह व्यक्ति को अरेस्ट कर लिया गया और ऐसे लगा कि जैसे उस लड़की को इंसाफ मिल गया।
फिर घटना में एक मोड़ आता है। डिलीवरी ब्वॉय लड़के का एक रोते हुए विडियो आता है और वह तमाम भीड़ जो अभी तक लाइन के इस तरफ थी। वह वीडियो वायरल होती है और भीड़ उस तरफ हो जाती है।
यह बता रहा है कि हिंदुस्तान एक भावना प्रधान देश है। यहां के लोग भावुक है और यहां के लोग भावना के हिसाब से, भावुकता के हिसाब से फैसले लेते हैं। जो कि अच्छी बात नहीं है क्योंकि तार्किक क्षमता वाला देश होना बहुत जरूरी है। तार्किक सोच होना बहुत जरूरी ना कि भावनात्मक सोच। यह आप इस घटना को इस तरीके से दिखेगी कि कौन गलत है या कौन सही है। वह तो बाद की बात है। वह तो जांच का विषय है। वह पुलिस इन्वेस्टिगेशन का विषय है।
मतलब एक लड़की का रोते हुए वीडियो देखा तो पूरी जनता उसको सपोर्ट में पड़ गई। किसी ने नहीं सोचा कि यह सच है या झूठ है। मतलब यह दर्शाता है कि आपको कितनी जल्दी मैनिपुलेट किया जा सकता है। आपको कितना जल्दी बहकाया जा सकता है। कोई रिसर्च नहीं करेगा, कोई वेट नहीं करेगा, राय बनाने से पहले आप इंतजार नहीं करोगे।
थोड़े दिन बाद दूसरा पक्ष का एक वीडियो आता है तब भी आप वही तरीका अपनाते हो। और पूरी जनता दूसरी तरफ चली जाती है।
यह बता रहा है कि हम कैसे अपने नेताओं को चुन कर लाते है। कैसे पॉलिटिकल पार्टियों को आपने वोट दिए है। यह घटना वह सिस्टम बता रही है जहां पर हमारे नेता हमसे हमारी भावनाओ की बातें करते हैं और हम अपने नेताओं को वोट दे देते है। यह घटना (zomato) दोस्तों बहुत ही जीता जागता एक उदाहरण है। एक लोकप्रिय उदाहरण है कि हमारा देश किस तरफ जा रहा है। हम भावुक है और हम भावनाओं के हिसाब से फैसले ले रहे है।
हमरी भावनाओ को नेता यूज कर रहे है। उसको मीडिया यूज कर रही है। यह घटना उसी बड़ी घटनाओं को छोटा रूप है। हमने अपनी ल सहनशक्ति को खो दिया। हमने पुलिस इन्वेस्टिगेशन की वेट भी नहीं करी। हम एक कदम आगे आकर सोचो अगर उस व्यक्ति का वीडियो नहीं आता तो एक व्यक्ति की जिंदगी खराब हो जाती और ऐसा कई बार हुआ भी है और होता रहता है, अक्सर होता रहता है। और उसके जिम्मेदार हम भी हैं।
मतलब मीडिया हमारी भावनाओं के हिसाब से न्यूस तैयार करता है। हम न्यूज़ के हिसाब से अपनी भावना को तैयार करने लगते है।
 तो मेरा यह मानना है कि हमें इस घटना में मसाला ढूंडने और जीत हार, और इंसाफ से ज्यादा जरूरी यह देखना है कि हम किस तरह की सोच के ऊपर काम कर रहे है। हमारी सहनशक्ति कितनी कम है, हमारी तर्क करने की क्षमता, हमारी किसी चीज को जांचने परखने की क्षमता कितनी कमजोर हो चुकी है कि हम एक भावुक वीडियो के ऊपर बह जाते है। एक मीडिया पर आई हुई खबर के ऊपर बह जाते है।
हमें तो कभी भी कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। यह घटना यह बता देगी की हिंदुस्तान की जनता को इस्तेमाल करना बहुत आसान है। यह घटना यह बताती है कि हमारी तर्क करने की शक्ति बहुत कमजोर हो चुकी है।
तो मेरा आपसे एक अनुरोध है कि इस घटना को एक उदाहरण के तौर पर समझने की कोशिश करो। अगर आपने इस घटना में कभी भी दिलचस्पी दिखाई कभी लड़की की तरफ या कभी उस लड़के की तरफ तो यह बता रहा है कि हम किसी चीज को यह किसी व्यक्ति को जांचने में कितने कम संसाधनों का इस्तेमाल करते है। हमने अपने वैचारिक औजारों का इस्तेमाल किया ही नहीं हमने सिर्फ एक वीडियो देखा और एक राय बना ली। थोड़े दिन बाद में बदल दी। फिर कोई रिपोर्ट आएगी कि वह लड़का झूठ बोल रहा था तो हम फिर से लड़की की तरफ।
यह घटना यह बता रही है कि हम एक ढोल है जो हर तरफ से बजते रहते है। दोनों तरफ से में बजते रहते हैं कभी नेता हमें बजाकर चले जाते है तो कभी मीडिया।
इसमें किसी नेता किसी मीडिया का कोई दोष नहीं है। केवल हमारा दोष है कि हमने अपने आपको, अपनी सोच को, अपने दिमाग को, अपग्रेड नहीं किया और आसान रास्ता चुना, आलसी वाला रास्ता चुना कि हम रिसर्च ना करें।किसी चीज की जांच ना करें बस राय बना दे क्योंकि दूसरा हमारे लिए वह जांच कर रहा है।
अपनी राय जरुर दें ।
धन्यवाद
राकेश शर्मा

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